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________________ ३१६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व कमल कोमल पणि नाल कंटक नित, संख कुटिलता बहुँ। समयसुन्दर कहइ अनन्त तीर्थंकर, तुम मई दोष न लहुँ ॥१ कवि अपने गुरुजनों के प्रति अत्यन्त श्रद्धावान् था। वह उनके और अपने बीच पारस्परिक मधुर सम्बन्ध प्राकृतिक उपादानों के माध्यम से व्यक्त करता है मुझ मन मोह्यो रे गुरु जी, तुम्ह गुणे जिम बाबीहड़ मेहो जी। मधुकर मोह्यो रे सुन्दर मालती, चन्द चकोर सनेहो जी। मान सरोवर मोह्यो हंसलउ, कोयल जिम सहक रो जी। मयगल मोह्यो रे जिम रेवा नदी, सतिय मोही भरतारो जी। गुरु-चरणे रंग लागउ माहरउ, जेहवउ चोल मजीठो जी॥२ पशु-पक्षियों आदि की विरहजनित ध्वनियों तथा उनकी चेष्टाओं का वर्णन भी अवलोकनीय है - कोकिल कुल मधुर ध्वनि कूजति, बोलति बप्पियरा प्रियु-प्रियु रे। मलय वात वज्जति गयणंगणि, गज्जति मेघ घटा कियु-कियु रे। रतिपति रयणि दिवस संतापति, व्यापति विरह दुक्ख दियु-दियु रे। दादुर मोर करइं अति सोर, प्रीयु-प्रीयु बोलइ ए बप्पीउरउ। मेहरउ टबकइ विजुरी झवकइ, कहउ क्यूं करि ठउर रहइ हियरउ॥ कविवर ने अपनी आत्माभिव्यक्ति के लिए भी प्रकृति के विविध उपकरणों की शोध की है। लगता है कि कवि का अन्तरंग एवं बहिरंग - दोनों पक्ष प्रकृत से बहुत प्रभावित है। कविवर कहते हैं कि मैं अपने को धन्य तब मानता, जब मेरा जन्म प्रकृति के विविध तत्त्वों के रूप में होता। निम्नलिखित गीत में द्रष्टव्य है, कवि का प्रकृति-प्रेम - क्यों न भये हम मोर विमलगिरि, क्यों न भये हम मोर ॥ क्यों न भये हम शीतल पानी, सींचत तरुवर छोर। अहनिश जिनजी के अंग पखालत, तोड़त कर्म कठोर ॥ क्यों न भये हम बावन चन्दन, और केसर की छोर । क्यों न भये हम मोगरा मालती, रहते जिनजी की ओर ॥ क्यों न भये हम मृदंग झलरिया, करत मधुर धुनि घोर। जिनजी आगल नृत्य सुहावत, पावत शिवपुर ठौर ॥ उपर्युक्त उद्धरणों के अतिरिक्त अन्य भी ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जो प्रकृति १. वही, अनन्तजिनस्तवन (१-३) २. वही, श्री जिनसिंहसूरि गीतानि (१-३) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, नेमिनाथ सवैया (१५.२७) ४. वही, विमलाचलमंडन आदि जिनस्तवन (१-३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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