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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व अप्रार्थ्याप्यनभीष्टापि सुलभापि पदे पदे । अहो ते धूलि माहात्म्यं लक्ष्मीरित्वाभिधीयसे ॥१ समयसुन्दर ने उदीयमान सूर्य का चित्रण अत्यधिक लालित्यपूर्ण किया है। इसमें एक ही सूर्य मण्डल की अनेक प्रकार की उत्प्रेक्षा बहुत ही सहृदयग्राही एवं आकर्षक है । यथा
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चतुर्यामेषु शीतार्त्तायामिनी कामिनी किमु । तापाय तपनोदगच्छद्गिम्बमङ्गेष्टिकां व्यधात् ॥ दिनश्रीधिकृता यांती रुष्टा रात्रि निशाचरी । वह्निज्वालावलीर्मुञ्चतीव भानुप्रकाशतः ॥ प्राचीदिग्प्रमदा चक्रे विशाले भालपट्टके । बालारुणरवेबिंम्बं चारुसिन्दूरचन्द्रकम् ॥ पश्यन्त्या वदनं प्राची पद्मिन्यां दर्पिणेऽरुणः । प्रवालाधररागेण रविबिम्बमिव प्रगे ॥ प्रतीच्याभिमुखं क्रीड़ोच्छालनाय नवाऽरुणः। प्राचीकन्याकरस्थः किं रक्तद्युत्रत्नकंदुकम् ॥ जगद्ग्रसित्वा पापिष्ठः क्व गतोद्धांत राक्षसः । तं द्रष्टुमिति बालार्को दीपिका दिनभूभुजः ॥ प्राचीदिग्नर्त्तकी व्योमवंशाग्रमधिरोहति । कृतरक्ताम्बराशीर्ष न्यस्तार्कस्वर्णकुम्भभृत् । त्वत्कीर्त्ति कान्तया दध्रे बालार्कस्तप्तगोलकः ।
दिव्याय स्वेच्छया भ्रान्त्या कुसतीत्वहृते नृप ॥
संस्कृत साहित्य में 'शिशुपालवध' का सूर्योदय वर्णन प्रसिद्ध है, पर जब हम
प्रस्तुत कवि के उपर्युक्त सूर्योदय वर्णन को देखते हैं, तो कवि का काव्यत्व ' शिशुपालवध'
के सूर्योदय वर्णन से भी उच्चकोटि का लगता है ।
कवि की समस्या - -पूर्ति की प्रतिभा भी अद्भुत है । जहाँ साधारणत: किसी समस्या की एक-दो पूर्तियाँ करने में ही सामान्य कवि को कठिनाई होती है, वहीं दूसरी ओर कवि समयसुन्दर समस्यापूर्ति में बहुत ही निपुण हैं। एक-एक समस्या की अनेक प्रकार से पूर्ति करने की प्रतिभा इनमें है । जैसे ' शतचन्द्रनभस्तलम्' इस प्रकृति से संबंधित समस्या की इन्होंने १६ प्रकार से पूर्ति की है और सभी पूर्तियाँ अत्यन्त रोचक हैं। उदाहरण के लिए हम एक-दो समस्या पूर्ति पद्य प्रस्तुत करते हैं।
१. रजोष्टकम् (१-८)
२. उद्गच्छत्सूर्यबिम्बाष्टकम् (१८)
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