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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ २५१ लिखा है कि स्वजन आदि स्वार्थी हैं; धन, यौवन आदि चंचल हैं । मृत्यु निश्चित है, पाप दुःखदायक है; अतएव धर्मप्रकृतियों में प्रवृत्त रहना चाहिए, क्योंकि यही एकमात्र सुखदायक है । ६. ६.३ जीव - काया गीतम् प्रस्तुत गीत का रचना - काल अज्ञात है। इसमें ६ गाथाएँ हैं । इस गीत में जीव और काया का परस्पर सुन्दर वार्त्तालाप किया गया है। काया का कथन है कि हे जीव ! मेरा त्याग मत कर। मैं तो तेरी प्रिया हूं। मैंने तेरे लिए सुदीर्घकाल तक अपरिमित कष्ट सहे हैं। जीव काया को प्रतिबोध देता है कि हे काया ! तू क्षणभंगुर है, मैं नित्य हूँ। तेरा त्याग ही मुझे मोक्ष दिलायेगा । ६.६.४ जीव- प्रतिबोध गीतम् प्रस्तुत रचना में जीवन को जिनधर्म का आचरण करने का उद्बोधन दिया गया है । संसार अनित्य है, अतः धर्माचरण करना चाहिये, जिससे जीव शाश्वत सिद्ध हो सके - यही आलोच्य रचना का वर्ण्य विषय है। इसमें ११ गाथाएँ हैं । इसका भी रचना - स्थल एवं रचना - समय अज्ञात है 1 ६.६.५ बारह भावना गीतम् जैन धर्म में १२ प्रकार की भावनाओं की अवधारणा है। भावना का अर्थ है चिन्तन या विमर्श | यह मनोवृत्तियों का प्रेक्षण भी है। जीवन की बनती-बिगड़ती घटनाओं तरंगित समुद्र में आत्म- नौका असन्तुलन की शिकार न हो जाये, इसके लिए निम्न लिखित १२ भावनाएँ बतायी गयी हैं। - १. अनित्य, २. अशरण, ३. संसार, ४. एकत्व, ५. अन्यत्व, ६. अशुचि, ७. आस्रव, ८. संवर, ९. निर्जरा, १०. लोकस्वरूप, ११. बोधिदुर्लभ और १२ . धर्मस्वाख्यात भावना । प्रस्तुत गीत में इनके चिन्तन करने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। गीत १५ पद्यों में निबद्ध है। गीत के रचना - समय की सूचना गीतकार ने नहीं दी है । ६.६.६ अध्यात्म सज्झाय प्रस्तुत गीत में ध्यान और प्राणायाम की चर्चा की गई है। प्राणायाम के द्वारा श्वाँस को जीतने की विधि बतलाते हुए उसके तीन भेद किये हैं १. कुम्भक, २. रेचक और ३. पूरक । नाभि में श्वाँस का रोकना कुम्भक कहा गया है। नाभिकमल से श्वायवायु का निस्सरण करना रेचक बतलाया गया है एवं श्वाँस को बाहर रोकना पूरक संज्ञा से अभिहित किया गया है। श्वाँसविजय से ही मनोविजय की बात कही गई है । दृष्टि को नासाग्र-बिन्दु पर केन्द्रित करके उड्डयन बन्ध लगाकर बौर दृढ़ आसन में बैठकर अन्तर्यात्रा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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