________________
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
पद्य ३
पद्य ३
पद्य ३
पद्य ५
पद्य ४
पद्य ५
पद्य ५
पद्य ५
पद्य १
पद्य ४
पद्य ५
पद्य ५
६.५.२.८३ गुरु दुःखितवचन
६.५.२.८४ मणिधारी जिनचन्द्रसूरि गीतानि, गीत के तीन पद्य प्राप्त, समस्त पद्य अपूर्ण ६.५.२.८५ श्री जिनकुशलसूरि गीतम्, प्राप्त पद्य ३, समस्त पद्य त्रुटित
२५०
६.५.२.७२ श्री जिनसागरसूरि गीतम् ६.५.२.७३ श्री जिनसागरसूरि गीतम् ६.५.२.७४ श्री जिनसागरसूरि गीतम् ६.५.२.७५ श्री जिनसागरसूरि गीतम् ६.५.२.७६ श्री जिनसागरसूरि गीतम्
६.५.२.७७ श्री जिनसागरसूरि गीतम्
६.५.२.७८ श्री जिनसागरसूरि गीतम्
६.५.२.७९ श्री जिनसागरसूरि गीतम्
६.५.२.८० श्री जिनसागरसूरि सवैया
६.५.२.८१ श्री जिनसागरसूरि गीतानि ६.५.२.८२ श्री जिनसागरसूरि गीतानि
६.५.२.८६ श्री जिनकुशलसूरि गीत, पद्य संख्या अस्पष्ट, समस्त पद्य त्रुटित ६.५.२.८७ मुलतान मण्डण जिनदत्तसूरि, जिनकुशलसूरि गीत, पद्य ५, सभी पद्य अपूर्ण ६.५.२.८८ अजयमेरु मण्डन जिनदत्तसूरि गीतम्, पद्य ४, सभी पद्य त्रुटित, रचना - काल वि० सं० १६८८ मार्गशीर्ष ५
६.६ उपदेशपरक रचनाएँ
कविवर्य समयसुन्दर का साहित्य मुख्यत: निवृत्ति-प्रधान है। वे पहले मुनि थे, बाद में कवि | साहित्य - साधना उनके लिए साध्य न होकर आत्म-कल्याण एवं जन-जन
सन्मार्ग के प्रदर्शन का साधन था । उन्होंने ग्रामानुग्राम विचरण कर धर्मोपदेश दिया और इसी हेतु उपदेशपरक रचनाओं का प्रणयन भी किया। यहाँ हम उनकी कुछ रचनाओं का परिचय देंगे, जो पूर्णरूपेण उपदेशपरक हैं। इनमें से भी उनकी कतिपय रचनाएँ तात्त्विक हैं, तो कतिपय रचनाएँ नैतिक या उपदेशपरक हैं । यहाँ दोनों प्रकार की रचनाओं का अध्ययन प्रस्तुत है -
६. ६.१ जीव प्रतिबोध गीतम्
प्रस्तुत गीत में पाप से निवृत्त और पुण्य में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देते हुए संसार की असारता का चित्रण किया गया है। गीत ७ पद्यों में है। इसका रचना-काल अनुपलब्ध
है ।
६.६.२ जीवन प्रतिबोध गीतम्
इस गीत में १० कड़ियाँ हैं । इसका रचना - काल असूचित है। इसमें कवि ने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org