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________________ १९८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सन्तोष छत्तीसी में कवि ने सन्तोष-धर्म अंगीकार करने वाले २२ विशिष्ट पुरुषों के कर्त्तक्व का उल्लेख करते हुए सन्तोष-गुण का माहात्म्य प्रस्तुत किया है। यह माहात्म्य ३६ पदों में व्यंजित है। नाहटा-बन्धुओं द्वारा सम्पादित समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' में यह कृति संग्रहीत है। ४.२.५ सत्यासिया दुष्काल-वर्णन-छत्तीसी कवि समयसुन्दर की यह कृति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसमें गुर्जर देश में हुए वि० सं० १६८७ के अकाल का वर्णन है। इसमें अकाल के कारण गुजरात के सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन-मूल्यों में कैसा परिवर्तन आ गया था, इसका कवि ने सजीव चित्रण किया है। इस संबंध में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी लिखा है कि कवि ने इसका बड़ा ही हृदय-द्रावक और जीवन्त वर्णन किया है। गुजरात के इस अकाल का कवि के व्यक्तिगत जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। उनके इस वर्णन में इतनी सजीवता आने का मूलभूत कारण यह है कि कवि ने आत्मनिष्ठ होकर स्वयं इस पीड़ा को भोगा है। यहाँ तक कि उन्हें जीवन-रक्षा के निमित्त अपने पात्र और शास्त्र तक भी बेचने पड़े। इस दुष्काल में कवि की आप बीती घटनाओं का विस्तृत विवरण हम उनके जीवन का परिचय देते हुए प्रथम अध्ययन में दे चुके हैं। अत: यहां उस पर पुनः चर्चा करना पुनरावृत्ति ही होगी। फिर भी इतना तो हम कह ही सकते हैं कि 'सत्यासिया दुष्काल-वर्णन-छत्तीसी' कवि की एक सशक्त रचना है, जिसमें कवि के अन्तस् की पीड़ा मुखर हो उठी है। प्रस्तुत रचना में रचना-स्थल एवं रचना-काल दोनों का ही निर्देश कवि ने नहीं किया है। 'चम्पक-श्रेष्ठि-चौपाई' के दूसरे खण्ड की छठी ढाल में कवि ने वि० सं० १६८७ में इस दुष्काल के होने की बात लिखी है। यही बात 'विशेष-शतक' की प्रशस्ति में भी सूचित है। कवि वि० सं० १६८७ में पाटण में थे। यह तथ्य 'जयतिहुअण-वृत्ति' और 'भक्तामर स्तोत्र' की 'सुबोधिका-वृत्ति' से स्पष्ट होता है। अतः स्पष्ट है कि कवि ने वि० सं० १६८७ में पाटण में इस छत्तीसी की रचना की होगी। नाहटा-बन्धुओं को प्रस्तुत कृति के फुटकर वर्णनवाले पद्यों की कई प्रकार की प्रतियां मिली थीं। इसके आधार पर उन्होंने अनुमान लगाया है कि समय-समय पर उन छन्दों की रचना फुटकर रूप में हुई और अन्त में पूर्ति-स्वरूप कुछ पद्य बनाकर यह छत्तीसी रूप संकलन तैयार कर दिया गया। यह कृति 'समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' में संग्रहीत है। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, भूमिका, पृष्ठ ७ २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, वक्तव्य, पृष्ठ १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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