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________________ १७८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व धारिणी ने सिर के श्वेत बालों को देखकर वैराग्यभाव से तापस-दीक्षा ली और तपस्या करने लगे। (रामायण में राजा दशरथ भी सफेद केश देखकर वैरागी होते हैं।) दीक्षा लेते समय रानी गर्भवती थी। वह एक पुत्र प्रसव करके मर गई। वल्कलचीरी नामक उस पुत्र का पिता ने ही पोषण किया। वह तरुण हो जाने पर भी भोला-भाला ब्रह्मचारी था और वह स्त्री-जाति से अनभिज्ञ था। राजा प्रसन्नचन्द्र के मन में अपने युवा भाई से मिलने की अभिलाषा थी। उसका चित्र देखकर उसने भ्रातृस्नेहवश कुछ वेश्याओं को उसे लाने के लिए कहा। वेश्याएँ तापस-वेश में गईं और वल्कलचीरी को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल हो गईं। वेश्याओं ने अपना स्थान पोतन-आश्रम बताया। वल्कलचीरी पोतन आश्रम ढूंढ़ता हुआ एक रथ के पीछे-पीछे पोतनपुर पहुंचा। कहीं आश्रम नहीं मिला, तो वह रथी द्वारा प्रदत्त द्रव्य से एक वेश्या के यहाँ रुका। वेश्या ने भेद जानकर अपनी पुत्री से उसका पाणिग्रहण करा दिया। प्रसन्नचन्द्र भाई के आश्रम से निकलकर नगर में पहुँचने के कारण चिन्तित था। वेश्या के घर वाजिव सुन उसने उसका कारण ज्ञात किया और अन्ततः वल्कलचीरी को महोत्सवपूर्वक राजमहल बुला लिया। उसे गृहस्थ के विविध आचार-व्यवहारों का ज्ञान कराया गया। उधर राजर्षि सोमचन्द्र वृद्धावस्था में पुत्र-वियोग से अन्धे हो गए, परन्तु उसकी कुशलता के सुखद समाचार मिलने पर उन्हें संतोष हो गया। वल्कलचीरी को पोतनपुर में बारह वर्ष बीत गये। एक दिन पितृ-स्मरण होने से वह अपने को धिक्कारने लगा। तदनन्तर दोनों भाई आश्रम पहुँचे। दोनों ने राजर्षि का चरणस्पर्श किया। यहाँ वल्कलचीरी बहुत पश्चाताप करने लगा। संयोगवश पिता को नेत्रज्योति मिल गई। पात्र-प्रतिलेखन करते हुए वल्कलचीरी को जाति-स्मरण/ज्ञान हो गया। अन्ततः उसने दीक्षा लकर कैवल्य प्राप्त किया। उधर राजा प्रसत्रचन्द्र वैराग्यपूर्ण हृदय से पोतनपुर लौटे। अरिहन्त महावीर ने कहा – श्रेणिक! एक दिन जब मैं पोतनपुर पहुँचा, तो प्रसन्नचन्द्र वन्दनार्थ आया। प्रवचन सुनकर अपने पुत्र को राजगद्दी दे, वह दीक्षित हो गया और अब आत्मसाधना कर रहा है। श्रेणिक! अब उसे केवलज्ञान हो गया है। समयसुन्दर वल्कलचीरी मुनिराज के गुण गाते हुए मोक्ष सुख की कामना करते हैं। वल्कलचीरी की यह कथा बौद्धजातक एवं महाभारत में भी ऋषिशृंग के नाम से उपलब्ध है। ४.१.९ शQजय-रास 'शत्रुञ्जय-रास' समयसुन्दर की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है। प्रस्तुत रास शत्रुञ्जय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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