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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १७७ कवि ने इस कृति को 'वल्कलचीरी-चउपई' के नाम से ही अभिहित किया है। उन्होंने इस कथा-काव्य का निर्माण मुलतान निवासी जैसलमेरी साह कर्मचन्द्र के आग्रह से किया था - मुलतान मइ वसइ रे, साह करमचन्द रे, जैसलमेरी शुभ जसइ रे। पद सगवट रे वलकलचीरी चउपइ रे, हाँ रे क्रमचन्द्र आग्रह कीध ॥२ कवि ने कृति के निर्माण काल का उल्लेख भी किया है - जैसलमेर रे, जिनप्रसाद घणा इहां रे, हां रे सोम वसु सिणगार। वरस वखाणीइ रे, खरतरगच्छ रे विरुद खरउ जागि जाणियइ रे॥३ इस उल्लेख के अनुसार कवि ने 'वल्कलचीरी-चौपाई' का निर्माण विक्रम संवत १६८१ में जैसलमेर में सम्पन्न किया था। 'वल्कलचीरी-चौपाई' दस ढालों में रचित है और इसमें सब मिलाकर २१६ पद्य हैं, जिसमें वर्णित विषय का सार इस तरह है - कवि समयसुन्दर भगवान् पार्श्वनाथ, सद्गुरु एवं सरस्वती को नमन करते हुए लिखते हैं कि मगध देश का राजगृह नगर अत्यन्त समृद्ध और पवित्र था। एक बार भगवान् महावीर उस नगर में पधारे। तदर्थ वहाँ का राजा श्रेणिक वन्दनार्थ गया। उसने मार्ग में एक महातपस्वी मुनि के दर्शन किये। सुमुख तथा दुमुख नामक श्रेणिक के दो राज-कर्मचारी भी उधर से निकले। सुमुख ने मुनि की प्रशंसा-स्तुति की, तो दुमुख ने निन्दा करते हुए कहा – 'यह कायर तथा पाखण्डी है। अपने बालक-पुत्र को राज्य देकर स्वयं तप का ढोंग करता है। अब शत्रु आकमण करेंगे और इसके पुत्र को मारकर इसकी रानियों को बन्दी बना लेंगे।' मुनि के मन में पुत्र-मोह जगा और वह मन ही मन शत्रुओं से युद्ध करने लगा। राजा श्रेणिक ने भगवान् महावीर से पूछा- मैंने मार्ग में जिन तपस्वी राजर्षि को वन्दन किया, वे यदि अभी मरें तो किस गति को प्राप्त होंगे? भगवान् ने कहा - सातवीं नरक। किन्तु कुछ समय बाद पूछा तो उत्तर मिला - 'सर्वार्थसिद्ध'। भगवान् ने इसका कारण विचारों के प्रवाह का बदलना कहा। दुमुख के वचन सुनकर राजर्षि को रौद्रध्यान आ गया था, किन्तु जब मुनि को अपने लुञ्चित सिर का ध्यान आया, तो वे पश्चात्तापपूर्वक शुभ ध्यान की ओर मुड़ गये। श्रेणिक के पूछने पर भगवान ने राजर्षि द्वारा बालक को राज्य देकर दीक्षा ग्रहण का कारण बताया कि पोतनपुर के राजा सोमचन्द्र और उनकी रानी १. वल्कलचीरी-चौपाई (१०) २. वही (१०.८) ३. वही (१०.५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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