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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १७१ जिनशासन शिवशासने सिताराम चरित्र सुणीजे रे। भिन्न-भिन्न शासन भणी को को वार्ता कहीजै रे॥ अब हम 'सीताराम-चौपाई' के वर्ण्य-विषय को प्रस्तुत करेंगे। प्रथम खण्ड की शुरुआत में कवि ने पूज्य पुरुषों को और शारदा माता को नमस्कार किया है। कवि ने परमज्ञानी गौतम गणधर के मुख से राजा श्रेणिक आदि परिषद् के समक्ष सीता के पूर्वभव से लगाकर उनका समग्र जीवन-वृत्त कहलाया है। यह शैली विमलसूरि के 'पउम-चरिउ' में उपलब्ध है। __ गौतम कहते हैं - भरत क्षेत्र में मृणाकुण्ड नगर में श्रीभूति पुरोहित की वेगवती नामक कन्या रहती थी। एक बार उसने सुदर्शन मुनि पर झूठा कलंक लगाया कि मैंने इन्हें स्त्री के साथ व्रत-भंग करते देखा था। लेकिन धर्मज्ञान प्राप्त होने पर उसने कृतकर्म का पश्चाताप किया और धर्मश्रवण कर संयम स्वीकार कर लिया। आयुष्यपूर्ण होने पर प्रथम देवलोक में पैदा हुई। वहाँ से वह मिथिलापुर के राजा जनक की भार्या वैदेही की कुक्षि से उत्पन्न हुई। एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ, लेकिन पूर्वभव के वैरवश एक देव ने उसका हरण कर लिया। पुत्री का जन्मोत्सव मनाकर उसका नाम सीता रखा गया। क्रमशः यौवनवय में उसका विवाह अयोध्या नरेश दशरथ-सुत रामचन्द्र से निश्चित हुआ। एक दिन नारद मुनि लावण्यवती और गुणवती सीता को देखने के लिए आये, किन्तु वहाँ तिरस्कृत होने से उन्होंने क्रोधवश वैताढ्य पर्वत पर रथनेउर नरेश के पुत्र भामंडल, जो वस्तुत: सीता का अपहत भाई था, को सीता का चित्र दिया। भामण्डल, सीता को पाना चाहने लगा। रथनेउर नरेश ने जनक राजा को बुलाकर सीता की मांग की। जनक ने इस विवाह-प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। अन्त में विद्याधरों के आग्रह से धनुषभंग का आयोजन किया गया। अनेक राजाओं की उपस्थिति में प्रथम धनुष राम ने चढ़ाया और दूसरा लक्ष्मण ने । राम के साथ सीता का विवाह हुआ और लक्ष्मण के साथ विद्याधरों की अठारह कन्याओं का पाणिग्रहण हुआ। राजा दशरथ सपरिवार विपुलसमृद्धि के साथ अयोध्या लौटे। यहीं पर श्रीसीताराम-प्रबन्धे-सीता-विवाह सीता-रूप वर्णनो नाम प्रथमः खण्डः' समाप्त हो जाता है। द्वितीय खण्ड में उधर भामण्डल ने अपने को अधन्य मानते हुए सीता की प्राप्ति के लिए ससैन्य प्रस्थान किया। मार्ग में जब वह विदर्भा नगरी में पहुँचा, तो वहाँ के दृश्यों को देखने से उसे जातिस्मरण हो गया। अपनी ही भगिनी की वांछा करने का उसे पश्चाताप हुआ। वापस आने पर चन्द्रगति के पूछने पर भामण्डल ने कहा- हे तात! मैं पूर्व जीवन में अहिमण्डल नामक राजकुमार था और मैंने एक ब्राह्मणी का अपहरण किया था। मैं मरकर राजा जनक का पुत्र हुआ, सीता मेरी बहिन है। पूर्वजन्म के द्वेषवश एक देव ने मेरा अपहरण किया तथा प्रारब्ध के कारण आपने मुझे अपना पुत्र मान लिया। यह सुनकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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