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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १४१ 'हि' शब्द को अलग करके 'मालय' शब्द का नवीन अर्थ – 'मा' अर्थात् लक्ष्मी का आलय (लक्ष्मी का निवास-स्थान) दिया गया है। इसी तरह कहीं-कहीं अन्य प्रसंगों में भी व्याख्यागत उत्कर्ष देखा जा सकता है। यह वृत्ति कवि ने अपने शिष्यों के पठनार्थ बनाई थी, इसलिए यह अन्य वृत्तियों की अपेक्षा संक्षिप्त है। महोपाध्याय समयसुन्दर के अतिरिक्त 'कुमारसम्भव' पर जिन मुनियों ने वृत्ति लिखी है, वे ये हैं - चारित्रवर्धनगणि, श्रीविजयगणि, जिनसमुद्रसूरि, मतिरत्न, धर्मकीर्ति, कल्याणसागर, लक्ष्मीवल्लभ, जिनचन्द्रसूरि, जिनभद्रसूरि, कुमारसेन आदि।१ ।। __ प्रस्तुत वृत्ति की हस्तलिखित प्रति श्री जिनहरिविहार, पालीताना से उपलब्ध हुई है। प्रति पूर्ण सुरक्षित है, केवल अन्तिम पत्र आवरण-पत्र से संश्लिष्ट हो जाने के कारण सुवाच्य नहीं है। फिर भी जितना पढा जा सका, उसके आधार पर वृत्ति के रचना-काल एवं रचना-स्थल आदि का संकेत मिलता है। कवि समयसन्दर ने वि० सं० १६७९ का चातुर्मास श्रीसंघ के आग्रह से प्रह्लादनपुर में किया था। उसी चातुर्मास के पश्चात् मार्गशीर्ष मास में यह वृत्ति लिखी गई थी। उन्होंने इसका प्रणयन कर पण्डित सहजविमल और पण्डित माईदास नामक अपने दो शिष्यों के द्वारा अपने अन्य शिष्यों के अध्ययनार्थ लिखवायी। प्राप्त प्रति कवि के ही एक अन्य शिष्य पं० हर्षकुशलमुनि द्वारा सं० १६९४, फाल्गुन वदी ३ को जालोर नगर में लिपिबद्ध की गई थी। यह वृत्ति अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है। इसके प्रकाश में आने से 'कुमारसम्भव' के पद्यों में नवीन अर्थों की विलक्षणता आयेगी। २.१९ सारस्वत-वृत्ति प्रस्तुत ग्रन्थ अभी तक अप्राप्य एवं अज्ञात रहा है। इस ग्रन्थ के बारे में हमें कहीं से कोई विशेष सूत्र या संकेत प्राप्त नहीं हुए; किन्तु यह ग्रन्थ समयसुन्दर ने निबद्ध किया था, इसका उल्लेख उन्होंने स्वयं सारस्वतीय शब्द-रूपावली में इस प्रकार किया है - सारस्वतस्य रूपाणि, पूर्व वृत्तिरेलीलिखित् । स्तम्भतीर्थे मघौ मासे, गणिः समयसुन्दरः।। उक्त उद्धरण से यह प्रमाणित हो जाता है कि समयसुन्दर ने सारस्वतव्याकरण पर प्रस्तुत वृत्ति लिखी थी। प्रस्तुत वृत्ति गवेषणीय है। २.२० विमलस्तुतिवृत्ति २.२१ मेघदूत प्रथम श्लोक (तीन अर्थ) २.२२ माघकाव्य-वृत्ति २.२३ लिंगानुशासन-चूर्णि २.२४ अनिट्कारिका १. द्रष्टव्य - जिनरत्नकोश, पृष्ठ ९३-९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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