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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व अठत्तरवाँ अधिकार- प्रस्तुत अधिकार में सामायिक-व्रत ग्रहण करते समय दिये जाने वाले तेरह 'खमासमणा' का निर्देश है। उन्नासीवाँ अधिकार – इस अधिकार में असज्झाय (अस्वाध्याय) कब और कितने काल तक रहता है, उसकी सविस्तार चर्चा की गई है। अस्सीवाँ अधिकार - प्रस्तुत प्रकरण में चैत्र पौर्णमासी के दिन शत्रुजय तीर्थ पर मध्याह्न काल में जो पुण्डरीक-देव-वन्दन किया जाता है, उसकी विधि दी गयी है। इक्यासीवाँ अधिकार- इसमें गुरु-स्तूप-प्रतिमादि को जिस विधि से प्रतिष्ठापित किया जाता है, उसका प्ररूपण किया गया है। बयासीवाँ अधिकार- इस अधिकार में जिनबिंब के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उसके पूजन के स्नात्र, विलेपन आदि इक्कीस प्रकारों का वर्णन किया गया है। तिरासीवाँ अधिकार - प्रस्तुत प्रकरण में 'कल्पत्रेप की विधि का विवरण दिया गया
है।
चौरासीवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में खरतरगच्छीय प्रतिक्रमण की विधि का विस्तृत वर्णन किया गया है। . पिचयासीवाँ अधिकार - इसमें पौषध-विधि का विस्तारपूर्वक निदर्शन है। छियासीवाँ अधिकार - इस अधिकार में जैन भगवती दीक्षा प्रदान करने की सम्पूर्ण विधि निर्दिष्ट है। सत्यासीवाँ अधिकार - इसमें उपधारन-तप की विधि वर्णित है। अट्ठासीवाँ अधिकार- इस प्रकरण में निर्विकृति (निवि तप) नामक तप में जिन पदार्थों का उपभोग वर्जित है, उनका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। उनयासीवाँ अधिकार – इसमें साध्वी द्वारा 'कल्पसूत्र' आदि स्वत: वांचन करने के विधान को शास्त्रोक्त सिद्ध किया गया है। यहाँ चतुर्थ प्रकाश सम्पूर्ण होता है।
पंचम प्रकाश नब्बेवाँ अधिकार - प्रस्तुत प्रकरण में रात्रिक एवं दैवसिक प्रतिक्रमण के षडावश्यक की आद्यन्त व्यवस्था का वर्णन किया गया है। इक्यानवेवाँ अधिकार - इसमें 'बीस स्थानक-तप' की विधि लिखी गई है। बानवेवाँ अधिकार- भोजन के समय जो वंदन किया जाता है, वह भोजन के पूर्व किया जाता है या पश्चात् – इस प्रश्न के सम्बन्ध में लेखक ने विधि आगमिक आधारों पर यह १. 'कल्पत्रेप' एक विशिष्ट प्रकार की साधना है, जो योगसाधना के लिए आवश्यक
मानी गयी है। इस विधि का विस्तृत विवेचन जिनप्रभसूरि कृत 'विधिमार्गप्रपा' (पृष्ठ ६२)में मिलता है।
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