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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ ९३ क्षमापना के समय आन्तरणी नाम छन्दना - दोष नहीं होता है। इसका उल्लेख जिनपतिसूरि कृत 'समाचारी' में तथा जिनप्रभसूरि कृत ' विधि- प्रपा' में है । सड़सठवाँ अधिकार - प्रतिक्रमण में 'राइय' तथा 'देवसिय' कब कहा जाता हैइसका समाधान करते हुए ग्रन्थकार ने प्रस्तुत प्रकरण में लिखा है कि रात्रि के प्रथम प्रहर तक 'देवसिय' एवं पूर्वाह्न के प्रथम प्रहर तक 'राइय' कहा जाता है 1 अरसठवाँ अधिकार इस प्रकरण में श्रावकों को एक परत वाली मुखवस्त्रिका पर 'वन्दना' देना शास्त्र - सम्मत बताया गया है। उनहत्तरवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में युगप्रधान, गच्छाधिपति, सामान्य आचार्य, वाचनाचार्य, महत्तरा, प्रवर्तिनी आदि विशिष्ट पदधारी मुनियों एवं साध्वियों का नगर - प्रवेश जिस ढंग से होता है, उसका निदर्शन है । सत्तरवाँ अधिकार - इसमें 'सिद्धान्तानुयोग' के विसर्जन की विधि का विवरण दिया गया है। इकहत्तरवाँ अधिकार इस प्रकरण में सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में भुवन देवता का कायोत्सर्ग करना चाहिये अथवा नहीं - इस प्रश्न पर विचार करते हुए लेखक ने दोनों के पक्ष के संबंध में उपलब्ध प्रमाण दिए हैं तथा अपनी ओर से कोई एकपक्षीय निष्कर्ष नहीं दिया है। बहत्तरवाँ अधिकार – इसमें 'पाक्षिक-सूत्र' के पठन एवं श्रवण से पूर्व की जानेवाली क्रिया का वर्णन किया गया है। तिहत्तरवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में जिनप्रभसूरि कृत ' विधि - प्रपा' नामक ग्रन्थ में उल्लिखित 'केश - लुंचन' से पूर्व की जाने वाली विधि निर्दिष्ट है। चौहत्तरवाँ अधिकार इसमें श्रावक द्वारा प्रतिक्रमण में जिन अतिचारों का चिन्तन किया जाता है, उनका निर्देश है। पचहत्तरवाँ अधिकार - प्रस्तुत प्रकरण में श्रमण द्वारा 'गौचरी' (आहार - चर्या) में घृत गिर जाने पर प्रायश्चित रूप की जाने वाली क्रिया का विवरण है। छिहत्तरवाँ अधिकार - इसमें पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण के अन्तर्गत छींक आने पर तद्दोष निवारणार्थ की जाने वाली विधि निदर्शित है। सतहत्तरवाँ अधिकार -- इस अधिकार में प्रतिक्रमण के मध्य श्रावकों के सामने से बिल्ली गमन पर की जाने वाली विधि का उल्लेख है । १. अपने उपभोग के निमित्त लाये गये भिक्षादि पदार्थों के लिए अपने सभी साथीसाधुओं को आमंत्रित न करना अर्थात् अकेला चुपचाप उनका उपभोग करना छंदना दोष है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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