SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व हो जाता है, इसकी चर्चा करते हुए ग्रन्थकर्ता ने आगमिक प्रमाण देकर यह बताया है कि ग्रीष्मकाल में पांच प्रहर, शीतकाल में चार प्रहर एवं वर्षाकाल में तीन प्रहर पश्चात् अचित्त जल सचित्त हो जाता है। अट्ठावनवाँ अधिकार - इस अधिकार में जर्गरी, घृष्टि, तक्र, करम्बक, ओदन, दधि, पक्वान्न इत्यादि कितने प्रहर तक ग्राह्य हैं और कितने प्रहरानन्तर अग्राह्य हैं- इस पर विचार करते हुए कवि ने यह लिखा है कि जर्गरी १२ प्रहर; घृष्टि, तक्र, करम्बक २० प्रहर; ओदन २४ प्रहर तथा दही १६ प्रहर पश्चात् अर्ग्राह्य हो जाता है। लेखक ने उक्त तथ्य की पुष्टि के लिए शास्त्रों के प्रमाण दिए हैं। उनसठवाँ अधिकार - दैवसिक प्रतिक्रमण तथा रात्रिक प्रतिक्रमण अपवाद-स्थिति में कब से कब तक कर सकते हैं- इस प्रश्न के उत्तर में यह स्पष्ट किया गया है कि दैवसिक प्रतिक्रमण दिन के तृतीय प्रहर से अर्द्धरात्रि तक कर सकते हैं और रात्रिक प्रतिक्रमण अर्द्धरात्रि से दिन के मध्याह्न तक। साठवाँ अधिकार- जैन शास्त्रों में पंचमी पर्व का उल्लेख जिन स्थानों पर उपलब्ध होता है, उनका इस अधिकार में उद्धरण सहित निर्देश किया गया है। इकसठवाँ अधिकार-शिष्य द्वारा यह प्रश्न किये जाने पर कि पर्युषण पर्व मनाने के लिए आगम-आज्ञा भाद्रपद शुक्ला ५ है, तब भी खरतरगच्छ में भाद्रपद शुक्ला ४ को पर्युषण पर्व क्यों मनाया जाता है? इसका उत्तर देते हुए समयसुन्दर कहते हैं कि यद्यपि यह बात सत्य है, तथापि श्री कालिकाचार्य द्वारा पर्युषण पर्व भाद्रपद शुक्ला ४ को सम्पन्न किया गया, वही परम्परा अधुना पर्यन्त चली आ रही है। कालिकाचार्य द्वारा प्रवर्तित पर्युषण पर्व की तिथि आदि से सम्बन्धित सम्पूर्ण घटना का विस्तृत विवरण 'कालिकाचार्य-कथा' के परिचयान्तर्गत हम दे आए हैं, उसका पुन: उल्लेख करना मात्र पिष्टपेषण होगा। यहाँ तृतीय प्रकाश का समापन होता है। चतुर्थ प्रकाश बासठवाँ अधिकार- इसमें जिनवल्लभसरि रचित 'समाचारी' का वर्णन किया गया है। तिरेसठवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में अनायतन चैत्य की पूजा और स्त्री द्वारा मन्दिर के मूलनायक की पूजा का निषेध जिस पदोद्धाटककुलक (जिनदत्तसूरि कृत) में निर्दिष्ट है, उसका आद्यन्त प्ररूपण किया गया है। चौंसठवाँ अधिकार- इस प्रकरण में जिनपतिसूरि द्वारा ६९ पद्यों में विरचित 'समाचारी' का विवरण दिया गया है। पैंसठवाँ अधिकार - पूर्वाधिकार में वर्णित 'समाचारी' के अतिरिक्त 'शिक्षारूप' एक अन्य समाचारी का प्रस्तुत अधिकार में वर्णन किया गया है। छियासठवाँ अधिकार – इस अधिकार में यह बताया गया है कि पाक्षिक प्रतिक्रमण में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy