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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व इकतालीसवाँ अधिकार - इस प्रकरण में इस बात को सिद्ध किया गया है कि जो फल साक्षात जिनेश्वर की अर्चना करने से प्राप्त होता है, वही फल जिनमूर्त्ति की अर्चना करने से प्राप्त होता है ।
बयालीसवाँ अधिकार - जिन प्रतिमा की पूजा करने से षट्काय की हिंसा होती है । उदाहरणार्थ- प्रतिमा निर्माण के समय सचित्त पाषाण के छेदन से पृथ्वीकाय की, जलअभिषेक के अप्काय की, दीपोज्वलन से अग्निकाय की, शंखवादन से वायुकाय की, कुसुम अर्पित करने से वनस्पतिकाय की और प्रज्वलित दीप में पतंगा गिरने से सकाय की हिंसा होती है। विवेच्य अधिकार में उपर्युक्त प्रश्नों का सम्यक् निराकरण किया गया है।
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तैंतालीसवाँ अधिकार - जिनमूर्ति पूजा का फल जिन-जिन आगमों में या ग्रंथों में वर्णित है, उनके तत् तत् सन्दर्भों का इस प्रकरण में विनियोजन किया गया है। चवालीसवाँ अधिकार - देवलोक में सूर्याभ आदि देवों द्वारा जो जिनप्रतिमा की पूजा की जाती है, वह पुण्य कर्म है या पापकर्म इस प्रश्न का समाधान करते हुए उसे पुण्यकर्म बतलाया गया है। इसके अतिरिक्त इसी प्रकार में एक अन्य प्रश्न उपस्थित किया गया है कि जब सूर्याभ आदि सम्यक्त्वी देव जिन-पूजार्थ अपने विमान से बाहर जाते हैं, तब कदाचित् विमान में मिथ्यात्वी देव भी शेष रहते होंगे- ऐसी स्थिति में क्या जिनप्रतिमा अपूज्य रहती है ? इसके प्रत्युत्तर में ग्रन्थकर्त्ता बताते हैं कि वे मिथ्यात्वी देव भी उसी प्रकार पूजा करते हैं, जिस प्रकार सम्यक्त्वी ग्रामाधीश के अभाव में अन्य ग्रामवासी । पैंतालीसवाँ अधिकार खरतरगच्छ में आगम-व्याख्या करने से पूर्व प्रत्येक आगम के लिए पृथक्-पृथक् योग किया जाता है, जबकि कतिपय अन्य गच्छों में यह मान्यता नहीं
प्रस्तुत अधिकार में लेखक ने खरतरगच्छ की मान्यता को शास्त्रसम्मत सिद्ध किया है। छियालीसवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में मूर्तिपूजक - परम्परा में साधु-साध्वियों में दण्ड रखने की जो परम्परा है, उसके आगमिक प्रमाण दिये गये हैं । सैंतालीसवाँ अधिकार - प्रस्तुत प्रकरण में जो लोग पैंतालीस आगमों को स्वीकार नहीं करते हैं, उनसे विविध प्रश्न किये गये हैं, जैसे- चोलपट्टक, मुखवस्त्रिका, ओधा आदि का प्रमाण किस आधार पर निर्धारित करते हैं? साधु पुस्तक आदि की रक्षा किस आधार पर करते हैं? पात्रों पर लेपन करने का आधार क्या है? जल कितने काल तक प्रासुक रहता है? आदि-आदि। और यह पूछा गया है कि वे जिन क्रियाओं को करते हैं, उनका उनके द्वारा मान्य बत्तीस आगमों में कहीं उल्लेख नहीं हैं, फिर वे उन क्रियाओं को किस आधार पर करते हैं? यदि वे उन क्रियाओं को अन्य आगमिक ग्रन्थों के आधार पर करते हैं, तो उन्हें उन आगम ग्रन्थों को भी स्वीकार करना चाहिये । प्रस्तुत प्रकरण मुख्यतः स्थानकवासी मान्यताओं से संबंधित है। स्थानकवासी समाज की ऐसी अनेक मान्यताएँ
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