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________________ ८८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व आषाढ़ पौर्णमासी से पचास दिन पश्चात् पर्युषण / संवत्सरी प्रतिक्रमण करने के मत का समर्थन किया है और यह बताया है कि दो श्रावण हों, तो द्वितीय श्रावण के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी और यदि दो भाद्रपद हों, तो प्रथम भाद्रपद की शुक्ला चतुर्थी को पर्युषण / संवत्सरी करना चाहिऐ । चौबीसवाँ अधिकार - पर्युषण पर्व में 'कल्पसूत्र' का वाचन किया जाता है। खरतरगच्छ मे देश, समय तथा परिस्थिति के अनुसार नव, ग्यारह या तेरह वाचनाओं में विभाजित करके 'कल्पसूत्र' का वाचन होता है, जबकि तपागच्छादि में नव वाचनाओं में ही इसे समाप्त किया जाता है। लेखक ने प्रस्तुत अधिकार में उक्त तथ्य की चर्चा करते हुए अपनी मान्यता को सप्रमाण शास्त्र सम्मत बताया है । पच्चीसवाँ अधिकार - खरतरगच्छ के अनुसार उपधान-तप के अतिरिक्त पौषध-व्रत में मात्र जल ही ग्रहण कर सकते हैं, भोजन नहीं; किन्तु तपागच्छ आदि अन्य गच्छों की मान्यतानुसार पौषध-व्रत में भोजन ग्रहण किया जा सकता है- इस प्रकरण में इस मतभेद की चर्चा करते हुए ग्रन्थकार ने अपने गच्छ की परम्परा को शास्त्रीय सिद्ध किया है। छब्बीसवाँ अधिकार - इस प्रकरण में शास्त्र - सम्मति से यह प्रमाणित किया गया है कि जिन प्रतिमा की 'अंजनशलाका' केवल आचार्य ही करा सकते हैं, सामान्य मुनि नहीं । सत्ताईसवाँ अधिकार - प्रस्तुत अधिकार में आगमिक उद्धरण देकर यह बताया गया है कि चतुर्दशी तिथि के क्षय होने पर पौषध आदि धर्मकृत्य पौर्णमासी को करना चाहिये । अठ्ठाईसवाँ अधिकार - इस प्रकरण में तिथि की वृद्धि होने पर उस तिथि में किये जाने वाले धार्मिक कार्य प्रथम तिथि में करने का निर्देश दिया है। इस बात की पुष्टि के लिये लेखक ने विविध ग्रन्थों के प्रमाण भी दिये हैं । उन्तीसवाँ अधिकार - तपागच्छ के अनुयायी भोजन ग्रहण करके भी पौषध - व्रत स्वीकार कर लेते हैं और खरतरगच्छ के अनुयायी ऐसा नहीं करते। इस प्रकरण में भोजन करके पौषध ग्रहण करना शास्त्रीय दृष्टि से अनुचित बताया गया है। तीसवाँ अधिकार - सामान्यतया खरतरगच्छ में कल्याणक - तिथि अथवा पर्व तिथियों में ही पौषध ग्रहण करने का विधान है, अन्य तिथियों में पौषध करने का निषेध किया गया है; तथापि उपधान-तप के समय तो श्रावक प्रतिदिन पौषध करते हैं । अतः प्रश्न यह उठता है कि जब अन्य तिथियों में पौषध का निषेध किया गया है तब उपधान-तप के समय ऐसा क्यों किया जाता है? इसके उत्तर में ग्रन्थकार में इसमें यह बताया है कि गीतार्थ मुनियों ने उपधान-तप के समय सर्वतिथियों में पौषध करने का विधान किया है और इसी आधार पर उपधान में सर्वतिथियों में पौषध किया जाता है। - इकतीसवाँ अधिकार - इसमें खरतरगच्छ में 'सामायिक' ग्रहण करते समय 'स्वाध्याय' निमित्त आठ बार नवकार मन्त्र उच्चारित किया जाता है, परन्तु यह बात आगमों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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