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________________ ३२ श्री अभिधान राजेन्द्र कोश और उसके कर्ता। 'अज्जा ' शब्द पर आर्या ( साध्वी ) को गृहस्थ के सामने कटु भाषण करने का निषेध, विचित्र ( नाना रंगवाले ) वस्त्र पहिनने का निषेध, गृहस्थ के कपड़े सीनेका निषेध, सविलास गमन करने का निषेध, गादी तकिया आदि को काम में लाने का निषेध, स्नान या अङ्गरागादि करने का निषेध, गृहस्थ के घर जाकर व्यवहारिक अथवा धार्मिक कथा करने का निषेध, तरुण पुरुषों के आने पर उनका स्वागत करने का या पुनरागमन करने का निषेध किया है। इसी प्रकार साध्वियों के उचित आचार-विचारों के विषय पर पूर्ण प्रकाश डाला है। ___ इस प्रथम भाग में जिन २ शब्दों पर जो जो कथायें या उपकथायें आई हैं उनकी नामावली भी दे दी गई है जिस से पाठकों को सरलता से उनकी जानकारी मिल जाय । यों तो कई कथाएं इस प्रथम भाग में हैं पर विशेषरूप से ५२ शब्दों पर कथाओं का वर्णन किया गया है। __इस तरह सातों का उपयोगी विषय संक्षिप्त रूप से यहां दे दिया गया है जिससे पाठकों को किसी भी भाग के विषय में जानकारी लेना हो तो वह यहां से ले सकता है। ___ अकार से ककार तक शब्दों के अन्तर्गत ( ) कोष्टक में आये हुए शब्दों की अकारादि क्रम से सूची दे दी गई है जिससे किसी भी शब्द को देखना हो तो उसकी जानकारी यहां से मिल सकती है। इस ग्रंथ का पठन करने के पहिले 'आवश्यक कतिपय संकेत' जो यहां मुद्रित किये गये हैं उनको सब से पहिले पढ़ लेना जरूरी है ताकि ग्रंथ के अध्ययन में किसी तरह की असुविधा या शंका न हो, इसके लिये ग्रंथकर्ताने १६ आवश्यक संकेत प्रकाशित किये हैं। इस अभिधान राजेन्द्र में इतना ही लिखकर आचार्यप्रवरने विश्राम नहीं लिया है। उन्होंने तो हरएक विषय पर अपनी लेखनी का उपयोग किया है। स्कन्दिल आचार्य के समय में जब दुर्भिक्ष पड़ गया और मुनियों का पठन-पाठनादि नष्टप्रायः होने लगा तब दूरदर्शी आचार्योने सोचा कि इस तरह तो सब ज्ञान लुप्त हो जायगा। उन्होंने संघो का मिलाप किया और यह मिलाप एक तो मथुरा में और दूसरा वल्लभी में हुआ तब दोनों के पाठ में वाचनाभेद हो गया और होना भी स्वाभाविक है; क्योंकि जो चीज विस्मृत होकर पुनः स्मरण कीजाती है उसमें अवश्य वाचनाभेद हो सकता है । इसका भी अच्छा विवेचन इस ग्रंथ में मिलता है। . आचार्य · आर्यवैर ' के समय तक अनुयोगों का पार्थक्य नहीं हुआ था और यह पार्थक्य आर्यरक्षितसूरि के समय में हुआ इस विषय पर प्रथम भाग में · अज्जरक्खिय' शब्द पर और ' अणुओग' शब्द पर विस्तृत विवेचन पाया जाता है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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