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श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ
श्रीसुधर्मास्वामिने १ आचाराङ्गसूत्र, २ सूत्रकृताङ्गसूत्र, ३ स्थानाङ्गसूत्र, ४ समवायाङ्गसूत्र, ५ भगवती सूत्र, ६ ज्ञाताधर्मकथासूत्र, ७ उपासगदशाङ्गसूत्र, ८ अन्तगडदशाङ्गमूत्र, ९ अणुत्तरोववाइयदशाङ्गसूत्र, १० प्रश्नव्याकरणसूत्र, ११ विपाकसूत्र इन ग्यारह अंगों की रचना की है। इन ग्यारह अंगों में अध्ययन, मूल श्लोक संख्या, उस पर टीका, चूर्णि, निर्युक्ति, भाष्य और लघुवृत्ति आदि जितनी भी श्लोकसंख्या है वह बताई गई है । इन ग्यारह अंगों की मूल श्लोकसंख्या ३५६५९ है और इन श्लोकों पर ७३५४४ टीका हैं और २२७०० श्लोकप्रमाण चूर्णि है तथा ७०० श्लोकनमाण निर्युक्ति है और सब मिलकर १३२६०३ श्लोकप्रमाण हैं । आचाराङ्ग और सूत्रकृताङ्ग की टीका शिलङ्गाचार्य की बनी हुई है और बाकी नवाङ्गी टीका आचार्य श्री अभयदेवसूरि की रचित हैं इसीलिये अभयदेवसूरि महाराज का नवानी वृत्तिकार के नाम से उल्लेख मिलता है । अभयदेवसूरि का जीवनचरित्र अभिधानराजेन्द्र के प्रथम भाग के ७०६ पृष्ठ पर आचार्यप्रवरने विस्तृत रूप से अंकित किया है । इसी प्रकार शिलङ्गाचार्य का जीवनपरिचय अभिधान राजेन्द्र कोष के सातवें भाग के ९०१ पृष्ठ पर दिया गया है । इन ग्यारह अंगों के ऊपर अंगचूलिकाएँ भी हैं। इन चूलिकाओं से ग्यारह अंग शोभित होते हैं । इनका भी अध्ययन आवश्यक है ।
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इन ग्यारह अंगों के सिवाय बारह उपाङ्ग १ उववाई, २ रायपसेणी, ३ जीवाभिगम, ४ पनवणा, ५ जम्बूद्वीपपन्नति, ६ चन्द्रप्रज्ञप्ति, ७ सूरप्रज्ञप्ति, ८ कल्पिका, ९ कल्पावर्तसिका, १० पुष्पिका, ११ पुष्पचूलिका, १२ वह्निदिशा हैं । इन बारह उपाङ्गों की मूल संख्या और इन पर किस आचार्य की टीका है तथा कितने अध्ययन आदि हैं यह भी बताया है । इन पिछले पांच उपानों का एक नाम निरपावली भी है और इन पांचों के ५२ अध्ययन हैं । इन बारह उपानों की मूल संख्या २५४२० है और टीका की संख्या ६७९२६, लघुवृत्ति ६०२८, चूर्ण ३३६० है इन सब की संख्या १०३५४४ श्लोकप्रमाण है ।
दस पन्ना (प्रकीर्णक)
दस प्रकार के पन्ना ( प्रकीर्णक ) १ चउसरण पइन्ना, २ आउरपञ्चक्खाण पन्ना, ३ भत्तपच्चक्खाण पन्ना, ४ संथारंग पन्ना, ५ तंदुलत्रेयाळी पइन्ना, ६ चंदविज्जग पन्ना, ७ देविन्दत्थव पन्ना ८ गणि विज्जा पइन्ना ९ महापच्चक्खाण पन्ना १० समाधिकरण पन्ना ये दस पन्ना अलग २ विषयों के ग्रंथ हैं इनकी लोकसंख्या दी है। इन दसों पइन्नाओं की संपूर्ण लोकसंख्या २३०५ है और प्रत्येक में दस दस अध्ययन हैं । इन दसों पइन्नाओं की गिनती भी तैंतालीस आगमों में की गई है ।