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________________ ३६ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ से इस कोष में यह बड़ी भारी विशेषता रही हुई है कि मागधी भाषा के अनुक्रम शब्दों पर सब विषय रक्खे गये हैं । 'मनुष्य जिस विषय को देखना चाहे वह उसी शब्द पर इस श्री अभिधान राजेन्द्र को उठाकर देखले उसको सब कुछ वहीं एक स्थान पर मिल जायगा । जो विषय जहां जहां जिस जिस जगह पर आया है उसका तमाम विस्तृत स्पष्टीकरण उसी जगह पर किया है। साथ ही बड़े २ शब्दों पर विषयसूची भी दी है जिससे कोई भी विषय जानने में कठिनाई उपस्थित न हो । सर्वसाधारण अच्छी तरह समझ सके इस क्रम से संपूर्ण, व्यवस्थित रूप से प्रत्येक विषय का प्रतिपादन किया गया है । प्रतिपादन और उस विषय की प्रामाणिकता के लिये मूलसूत्रों के पाठ और उन मूलसूत्रों की निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका तथा उस संबंधी और भी प्राचीन प्रामाणिक धुरंधर विद्वान आचार्यों के रचित ग्रंथों के प्रमाण ग्रंथों की नामावली के साथ प्रस्तुत किये हैं जिससे उस विषय का संपूर्ण प्रतिपादन मौलिक रूप से हो जाय और भी उस शब्द या विषय की प्रामाणिकता के लिये किसी भी विद्वान् आचार्य, मुनि, श्रावक आदि की रची हुई कथायें मिली हैं उनको भी उसी शब्द के साथ २ संग्रह कर दिया गया है जिससे विषय की पुष्टि में बड़ी भारी सरलता प्राप्त हो गई है । इतिहासकारों के लिये सब ही प्रसिद्ध तीथों का उन्हीं शब्दों के साथ परिचय कराया गया है, उनकी संपूर्ण जानकारी दी है, उनका आदि से लेकर अंत तक संपूर्ण प्रत्येक दृष्टि से विवेचन किया है । उन तीर्थों के प्राचीन इतिहास पर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व का प्रकाश डाला है । इसी प्रकार तीर्थंकरों की जीवनियों को भी अच्छी तरह प्रतिपादित किया है। तीर्थंकर अवस्था की जीवनी पर ही नहीं पूर्वभवों से लेकर निर्वाण पर्यंत उनके जीवन पर अच्छा विवेचन किया है। कथा के रसिक जनप्रिय संसार के लिये भी सैंकड़ों कथाओं का संग्रह इस अभिधान राजेन्द्र में मिलता है । इस श्रीअभिधान राजेन्द्र कोष को सात भागों में विभक्त किया है जिसका संपूर्ण परिचय प्रत्येक भाग के अलग २ रूप में नीचे दिया जाता है, जिससे पाठकों को संपूर्ण जानकारी मिल जायगी कि उन्हें किस भाग में कौनसा शब्द मिल सकेगा, साथ ही उस भाग की संपूर्ण माहिती भी उनको सरलता से प्राप्त हो जायगी । यों तो एक २ भाग इतने विस्तृत रूप में रचित है कि उसकी संपूर्ण जानकारी तो यहां नहीं दी जा सकती; क्यों कि उसकी जानकारी देने में एक बड़े ग्रंथ का निर्माण हो सकता है फिर भी संक्षिप्त रूप में उसका परिचय दिया जा रहा है:
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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