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________________ साहित्य राजस्थानी जैन साहित्य | 4 अप्पा - तुप्पा' भणिरे अह पेच्छर मारुए तत्तो ॥ 4 उ रे मल्लउं ' भणिरे अह पेच्छर गुजरे अवरे || आम्ह का तुम्हें मितु' भणीरे पेच्छए लाडे || भाउअ भइणी तुम्हे ' भणिरे अह मालवे दिट्ठे ॥ 4 4 संस्कृत छाया " णउ अप्पा - तुप्पा' भणतोऽथ प्रेक्षते मारवांस्ततः ॥ 'रे मल्लउं ' भणतोऽथ प्रेक्षते गौर्जरानपरान् ॥ 4 आम्ह काई तुम्हें मित्तु' भणतः प्रेक्षते लाटीयान् ॥ 4 भाउअ महणी तुम्हे' भणतोऽथ मालवीयान् दृष्टवान् ॥ 4 ७१९ उपर्युक्त उद्धरणों से तत्कालीन प्रान्तीय भाषाओं की विशेषताओं का बोध होने के साथ-साथ उस समय यहां अपभ्रंश भाषा का प्रचार था - स्पष्ट है। काव्यमीमांसाकार राज. शेखर ने भी मरुटक्क एवं भादानक प्रदेश की भाषा अपभ्रंश प्रयोगवाली थी लिखा है " सापअंश प्रयोगाः सकलमरुभुवस्टकभादानकश्च । " जैन कवियोंने भी अपने ग्रन्थों की भाषा को मरु भाषा बतलाई है । राजस्थान के श्रेष्ठ काव्य ' वेलिकिसन रुकमणीरी ' के ब्रज भाषा के पद्यानुवादकर्ता गोपाल लाहोरीने भी वेलि की भाषा को 'मरु' भाषा ही कहा है। राजस्थानी नाम तो आधुनिक है । ' डिंगल ' चारणों आदि की प्रधान काव्य-भाषा रही है। पर उसका डिंगल नाम अधिक पुराना नहीं है । जैनकवि कुशललाभ के पिङ्गलशिरोमणी नामक १७ वीं शताब्दी के छन्द ग्रन्थ में सर्वप्रथम ' उडिंगल ' नाम मिलता है । राजस्थानी - जैन साहित्य का निर्माण मरुभाषा में हुआ है । श्वेताम्बर संप्रदाय के खरतरगच्छीय विद्वानों का भी साहित्य अधिक है और उनका प्रभाव एवं विहार मारवाड़ ही में अधिक था । वैसे मारवाड़ी भाषा राजस्थान की प्रसिद्ध साहित्यिक भाषा है ही । कुछ दिग म्बर विद्वानों ने ढूंढाड़ी भाषा में भी साहित्य निर्माण किया है, क्योंकि इस संप्रदाय का प्राधान्य जैपुर, कोटा आदि की ओर ही रहा है। परंतु उनकी ढूंढाड़ी भाषा में हिंदी का प्रभाव अधिक नजर आता है । व्रज प्रदेश के निकट होने से यह स्वाभाविक ही है । राजस्थानी - जैन - साहित्य की पूर्व परम्परा - भगवान् महावीरने धर्म प्रचार के लिये जनता की भाषा को ही अपनाई । उनका विहार मगध एवं उसके निकटवर्ती प्रदेशों में अधिक हुआ। अतः उनके उपदेश की भाषा को जैनागमों में अर्द्ध-मागधी संज्ञा दी गई है। इसके पश्चात् बंगाल एवं बिहार से जैन - श्रमणों
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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