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________________ गुरुगुणाष्टक और स्मरणाञ्जलि। (८) संवेदन-संगीत [ नथमल " पद्म"-खाचरौद] . महावीर के वीर बता तू, कहां चला अब कहां चला !! सत्य, अहिंसा, क्षमा, शील के तू सपंथ बतादे, जिस से मानव मानव बनकर दानवता दफनादे, दुराचार का दृश्य देखकर रोती भारत मा अचला !! महावीर के वीर० ओ दीर्घ दृष्टिवाले बाबा ! ज्ञान सुज्योत जगादे, समदर्शन का स्रोत बहाकर चारित-भाव सजादे, प्रेम-वारि से सींचो अब तो, जाय बगीचा ना कुम्हला !! महावीर के० किसी दशा में होवे चाहे, स्वलक्ष्य का ध्यान रहे, यम-नियम से गिरा जो मानव, शिवगति से हीन रहे, सिद्धांतों पर कैसे चलना, विधि वह जग को दे बतला !! महावीर के० तेरे बेटे लाड़-लाडले अन्न-वारि को तरसे, उन पर पूंजी वाले हरदम आफत बनकर बरसे, जो स्याद्वाद का बोल बोलते, उनको रस्ता दे बतला !! महावीर के० तेरा है संदेश विश्व को, 'वीर' वचन अपनाना, अमित अहिंसा के पूजक बन दो जीवन तुम अपना, पथ मटके को पंथ बताकर, बंधु बंधु को गले मिला !! महावीर के० ___अर्द्ध शताब्दी उत्सव 'गुरु' का जग भर ने हितकर माना, " अभिधान राजेन्द्र " 'पद्म' 'कोष' पर, लुब्ध मधुप बुध नाना, जिससे निकले जय 'यतीन्द्र', जो हरदे जग की अला-बला!! महावीर के०
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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