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________________ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक - प्रथ हिन्दी जैन १९ देविओं के छंदः - लोकमान्य कई यक्ष, शनिश्वर आदि मह, त्रिपुर आदि देवों की स्तुतिरूप छंद, जैन जतियों द्वारा रचित बहुत से मिलते हैं । उन देवी देवताओं का जैनधर्म से कोई संबंध नहीं है। रामदेवजी, पाबूजी, सूरजजी और अमरसिंहजी आदि की स्तुतिरूप भी कई रचनाएं हैं । ७१० २० लोकवार्तायें संबंधी ग्रन्थः - लोक-साहित्य के संरक्षण में जैन-विद्वानों की सेवा अनुपम है। सैंकड़ों लोकवार्त्ताओं को उन्होंने अपने ग्रन्थों में संगृहीत की हैं। एक-एक लोकवार्ता के संबंध में संस्कृत एवं लोकभाषा में उनके बहुत से ग्रंथ उपलब्ध हैं । बहुतसी वार्चाएं तो यदि वे न अपनाते तो विस्मृति के गर्भ में कभी की विलीन हो जातीं। यहां राजस्थानी भाषा में रचित फुटकर लोकवार्त्ताओं की सूची दी जा रही है: -- अंबड चरित्र कर्पूरमञ्जरी गोरावादल चन्दनमलयागिरि दोलामारु नंदबत्तीसी चौपाई पनरहवीं कलारास पश्चाख्यान प्रियमेलक भोज - चरित्र कर्चा:- विनयसमुद्र, रूपचन्द्र, मतिसार, हेमरत्न, लब्धोदय, भद्र सेन, विक्रम चौपाई पञ्च इंच चौपाई सिंहासन बत्तीसी खापरा चोर चौपाई "" "" "" "" 99 99 39 "" "" 39 विक्रम चरित्र - महाराजा विक्रम की दानशीलता, पराक्रम एवं बुद्धिचातुर्य लोकसाहित्य में सब से अधिक प्रचारित हैं। भारतीय प्रत्येक भाषा में विक्रम संबंधी लोककथाओं का प्रचुर साहित्य उपलब्ध है । मरु-गूर्जरी भाषा में भी करीब ४५ रचनाएं प्राप्त हो चुकी हैं। यहां उनमें थोड़ीसी राजस्थानी रचनाओं का ही उल्लेख किया जा रहा है। विशेष जानने के लिये ' मेरे विक्रमादित्य संबंधी जैन साहित्य ' ( विक्रम स्मृति ग्रंथ में ) देखना चाहिये । 39 37 क्षेमहर्ष, जिनदर्ष, सुमतिहंस, यशोवर्धन, कर्त्ता - हेमाणंद मुनिमाल, कुशललाभ, सिंहगणि वीरचन्द वच्छराज, हीरकलश, समयसुन्दर, मानसागर, मालदेव, सारंग, हेमानन्द, कुशल धीर, विनयसमुद्र, लक्ष्मीवल्लभ, लाभवर्धन, मलयचन्द्र, ज्ञानचन्द्र, विनयसमुद्र, हीरकलश, विनयलाभ, राजशील, अभयसोम, लाभवर्धन,
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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