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________________ साहित्य राजस्थानी जैनसाहित्य । १४ शिक्षाप्रदः-बुद्धि रासो, सवासौ सीख, मूर्ख बहोत्तरी, आदि शिक्षापद रचनाएं हैं। १५ औपदेशिक:-सर्वसामान्य धर्म एवं नैतिक नियमों को उपदेशित करनेवाले बावनी, बत्तीसी आदि संज्ञक वीसों जैन-राजस्थानी रचनाएं हमारे संग्रह में हैं। बावनी संज्ञक रचनाएं अधिकतर वर्णमाला के ५२ अक्षरों के क्रमशः प्रारंभिक पदवाले हैं । ये १३ वीं शताब्दी से रची जाने लगीं। उनमें से मातृ बावनी, दोहा मातृका आदि प्राचीन रचनाएं 'प्राचीन गुर्जर काव्यसंग्रह' में प्रकाशित भी हो चुकी हैं। १६ ऋतुकाव्यः-बारहमासे-चौमासेसंज्ञक अनेक राजस्थानी जैन रचनाएं उपलब्ध हैं जो अधिकांश नेमिनाथ और स्थूलभद्र से संबंधित होने पर भी ऋतुओं के वर्णन से परिपूरित हैं। कुछ स्वतन्त्र रचनाएं भी उपलब्ध हैं, जिनमें 'शृंगारसत ' भारतीय विद्या में प्रकाशित है। · वसंत विलास' तो बहुत प्रसिद्ध ग्रंथ है। विद्वानों की राय में वह भी किसी जैन यति की रचित है। बारह मासों का प्रारम्भ १३ वीं शताब्दी से ही हो जाता है। सब से प्राचीन बारहमासा जिनधर्मसूरि बारह नौवउं है । १७ वर्णनात्मक:---राजस्थानी गद्य में तुकान्त गद्य-काल के उत्कृष्ट उदाहरण स्वरूप कई वर्णनात्मक ग्रंथ मुझे प्राप्त हुए हैं। १५ वीं शताब्दी से उनका प्रारम्भ होता है। सं. १४७८ के माणिकसुन्दर रचित 'पृथ्वीचन्द्र चरित्र' अपरनाम ' वाग्विलास' नामक ग्रन्थ - प्रकाशित हो चुका है जो वर्णानात्मक प्रन्थों में सर्वश्रेष्ठ है। ऐसा तुकान्त सुन्दर वर्णन अन्यत्र कम प्राप्त है । मुझे अन्य पांच स्वतंत्र वर्णनात्मक ग्रन्थों की प्रतियें मिली हैं। जिनमें तीन अपूर्ण हैं। उनमें भी विविध विषयों का वर्णन बहुत ही मनोहर है । इनका परिचय में शीघ्र ही स्वतन्त्र लेख द्वारा राजस्थान-भारती में प्रकाशित कर रहा हूँ। अभी-अभी मुनि जिनविजयजी से १७ वीं शताब्दी के सुकवि सूरचंद्र रचित पदैकविंशति नामक ग्रंथ की एक अपूर्ण प्रति प्राप्त हुई है । ग्रन्थ संस्कृत में है, पर प्रासंगिक वर्णन राजस्थानी गद्य में ही दिया है, जो बहुत ही महत्वपूर्ण है । ग्रन्थ की पूर्ण प्रति प्राप्त होने पर इसका महत्व भली भांति विदित हो सकेगा। पद्य में दुष्काल वर्णन, शीत-ताप वर्णन आदि रचनायें प्राप्त हैं। १८ सम्बादः-सम्वादसंज्ञक जैन-रचनाओं में बहुतसों का संबंध जैनधर्म से नहीं है । इनमें कवियोंने अपनी सूझ एवं कवि-प्रतिभा का परिचय अच्छे रूप से दिया है। मोतीकपासिया सम्बाद, जीभ-दांत सम्बाद, आंख-कान सम्बाद, उद्यम-कर्मसम्बाद, यौवनजरासम्वाद, लोचन--काजलसम्बाद आदि रचनाएं उल्लेख योग्य हैं।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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