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साहित्य
लीलावती चौपाई विद्याविलास कथा
विल्हण पंचाशिका
शशिकला चौपाई शुकबहोतरी श्रृंगार मंजरी चौपाई स्त्रीचरित्ररास
राजस्थानी जैनसाहित्य ।
कर्ता - कक्कसूरि शिष्य कुशललाभ,
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सगालसारास
सदयवत्स सावलिंगा चौपाई,,
कान्हड कठियारा चौपाई
रतना हमीर री बात
राजा रिसालू की बात
लघुवार्तासंग्रह
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हीरानंद सूरि, आज्ञासुंदर, आनंदउदय,
राज सिंह जिनहर्ष, यशोवर्धन,
ज्ञानाचार्य, सारंग, ज्ञानाचार्य,
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रत्न सुन्दर, रत्नचन्द,
जयवंत सूरि,
ज्ञानदास,
कनकसुन्दर, केशव,
मानसागर,
उत्तमचंद भंडारी,
आणंद विजय,
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कीर्तिसुंदर,
लोकवार्त्ताओं के अतिरिक्त लोकगीतों को भी जैन विद्वानोंने विशेषरूप से अपनाया है । लोकगीतों की रागिनियों ( ढाल, देशी आदि ) पर भी उन्होंने अपने रास, स्तवन आदि अधिकांश रचनाएं की हैं। उन रचनाओं के प्रारम्भ करने के पहले जिस लोकगीत की देशी में वह गाई जानी चाहिये उस लोकगीत की प्रारंभिक पंक्ति देदी है। हजारों लोकगीतों का पता इस निर्देशन से ही मिल जाता है। कौनसा लोकगीत कितना पुराना है, उसका प्रारंभिक स्वरूप क्या था, उसकी लोकप्रियता कितनी अधिक थी - इन सब बातोंका भी पता लग जाता है । कुछ लोकगीतों को तो उन्होंने पूरे रूप से ही लिख रक्खा हैं जो महत्वपूर्ण हैं । ऐसे लोकगीतों की देशियों की सूची श्रीयुत् मोहनलाल दलीचन्द देशाई ने बड़े परिश्रम से तैयार करके अकारादि क्रम से 'जैन- गुर्जर कवियों ' भाग ३ के परिशिष्ठ नं० ७ मे पृ० १८३३ से २१०४ तक में दी हैं। इन देशियों की संख्या २५०० के लगभग है । जिन में से आधे के करीब तो राजस्थानी लोकगीतों की है ।
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२१ जैनेतरों के मान्य ग्रन्थों पर भी जैन विद्वानोंने कुछ ग्रंथ बनाये हैं जिनका उल्लेख पूर्व किया जा चुका है । देवीसातसी, एकादशी कथा, रामायण इनमें मुख्य हैं । और भी जैनेतर मंत्र आदि लोकोपयोगी विषयों पर फुटकर साहित्य बहुत कुछ जैन यतियों द्वारा लिखा मिलता है ।