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________________ साहित्य जैनकथा - साहित्य | ७०१ सती से लेकर वैश्या सभी वर्गों के पात्रों का समावेश है । नारी, पुरुष, बाल, वृद्ध, युवा, मुनि, किन्नर, यक्ष, विद्याधर, देव यहां तक कि पक्षी सभी पात्र रूप में जैन कथा कहानियों में विद्यमान हैं । कहानियों के नारी और पुरुष दोनों ही पात्र सत् असत् प्रवृतियों को लिये हुये हैं। दोनों का ही व्यक्तित्व कहानियों में बहुत महत्वपूर्ण है । घटनाएं उनके कर्मशील जीवन को ही केन्द्र बना कर गतिशील होती हैं । सत्य तो यह है कि कथा साहित्य के सभी पात्र सजीव और यथार्थ हैं। वे अपने चरित्र की दुर्बलताओं और शक्तिओं से हमारे हृदय को स्पर्श करते हैं। घटनाओं के घात - प्रतिघात में उनका कहीं उत्थान होता है, कहीं पतन । समग्र रूप से कथाकार ने अपने पात्रों को प्रकृत रूप में ही हमारे सामने रखा है । आज की कहानियों की भांति मानसिक अन्तर्द्वन्द्व, उनके चरित्र का मनोवैज्ञानिक अध्ययन, उनके अन्तरतम के गूढ़ रहस्यों का उद्घाटन इन कथा कहानियों में प्राप्त नहीं होता । इसका कारण यह है कि आज के कहानीकार का मुख्य ध्येय ही अपने पात्रों का चारित्रिक विश्लेषण है । परन्तु इन पुरातन कथा कहानियों में कथानक की भांति पात्र भी निमित्त मात्र हैं । इसलिये इन कहानियों को हम स्पष्ट रूप से चरित्रप्रधान भी नहीं कह सकते । पात्रों की अवतारणा वस्तुतः बुराई का अन्त बुराई में और भलाई का अन्त भलाई में दिखाने के लिये की जाती है । कथाकार को इतना अवकाश ही नहीं होता कि वह परिस्थितियों के घात-प्रतिघात के बीच डूबते- तरते हुये पात्रों के चरित्रों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करे। फिर जिन साधारण पाठकों के लिये इन कथाओं की योजना की गई थी उनके लिये ऐसा अपेक्षित भी न था । कहानियों का मनोरंजक इतिवृत ही उनके लिये यथेष्ठ था । इसीलिये इन कथा-कहानियों की चरित्रचित्रण प्रणाली भी इतिवृतात्मक है । आज की भांति तब मुद्रणकला की सुविवाऐं भी नहीं थीं । कहानियों का प्रचार मौखिक रूप से ही होता था, फलतः कहानियों का रूप सीधासाधा होता था जो साधारण स्तर के पाठकों को सहज ही हृदयंगम हो सके । उस समय के कथाकार के लिये कथानक या चरित्र विश्लेषण को लेकर किसी प्रकार के कलात्मक सृजन की न तो आवश्यक्ता ही थी और न ऐसा उचित ही था । तब मुद्रण यंत्र के अभाव और कहानियों के मौखिक प्रसार के कारण आज की कहानियों तथा प्राचीन कहानियों के शैली - विधान में भी पर्याप्त अन्तर है । आज की कहानियां शैली की दृष्टि से अनेक रूप लिये हुये हैं । कहीं वे कथात्मक हैं, कहीं आत्मचरित्र शैली में लिखी गई हैं। कहीं उनका रूप ऐतिहासिक है जहाँ कहानीकार अपनी ओर से हीं कथावाचक की भांति कहानी कहता चलता है । कहीं यह शैली 1
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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