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________________ ७०२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन नाटकीय है । प्रारंभ भी कहानी का अब बड़े आकर्षक ढंग से किया जाता है। परन्तु प्राचीन कहानियों में ये सब बातें नहीं हैं । शैली की दृष्टि से सभी कहानियाँ इतिवृत्तात्मक हैं और उनका पात्र 'चम्पापुरी नगरि में जिनदत्त नामक सेठ रहता था' ऐसे वाक्यों से होता है । सम्पूर्ण कहानी का रूप इसी प्रकार का होता है जैसे कोई व्यक्ति किसी घटनाको अपने साथियों को सुना रहा हो। अंग्रेजी की प्राचीन कहानियां तथा अरब की पुरानी कहानियाँ भी इसी प्रकार की हैं, जैसे 'वोन्स अपोन ए टाइम ( once upon a time ) तथा ' एक दफाका जिक्र है कि ।' इस प्रकार भावगत और रचनागत दोनों ही रूपों में जैन कथा साहित्य बहुत ही पुष्ट और प्राणवान् है। उस में नीति, धर्म और साहित्य का मणिकांचन संयोग है। साहित्य का मूल प्रयोजन ही मानव भावनाओं को परिष्कृत करना, उसे पशु सतह से ऊपर उठाना, उस की कलात्मक अभिरुचि को स्वस्थ उपादान प्रदान करना है। इसी रूप में साहित्य मानवता का पथप्रदर्शक है। सम्पूर्ण जैन कथा साहित्य साहित्य के इसी मूल प्रयोजन के चेतना रस से अनुप्राणित है। विशुद्ध साहित्य की व्यापक भूमि पर खड़े होकर उसने मनुज समाज को मानवता का निखिल सौंदर्य प्रदान किया है । उस में साहित्य के कलात्मक माध्यम द्वारा अहिंसा, करुणा, क्षमा, त्याग, दया, संयम आदि उदात्त वृत्तियों का ज्वलन्त सन्देश है । अपनी इसी विशिष्टता के कारण सम्पूर्ण भारतीय वाङ्गमय में जैन कथा साहित्य शीर्ष स्थान पर विराजमान होने योग्य है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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