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________________ साहित्य जैनाचार्यों की छन्दशास्त्र के लिये देन । ૮૨ आदि का पता नहीं चलता । पुष्पदन्तने इन्हें आपुलीसंघीय लिखा है अर्थात् वे यापनीय सम्प्रदाय के अनुयायी जान पड़ते हैं ।' । पहले तीन अध्यायो में प्राकृत के छन्दों का विवेचन है, साथ ही कर दिये गये हैं । इस ग्रन्थ का स्वयम्भू का छन्दग्रन्थ ८ अध्यायों में विभक्त है वर्णवृतों का और शेष के पांच अध्यायों में अपभ्रंश के छन्दों के उदाहरण भी अनेक पूर्व कवियों के ग्रन्थों से चुन प्रो. वेलणकरने जिस प्रति के आधार से सम्पादन किया है उसमें प्रारम्भ के २२ पत्र नहीं हैं । जो अंश उपलब्ध है उसमें संस्कृत में जिन्हें वर्णवृत्त मानते हैं, उन्हीं का प्राकृत मात्रावृत्तों के रूप में वर्णन मिलता है। प्राकृत के असली मात्रा छन्द, आर्या, गलतिक, स्कन्धक और शीर्षक आदि का नहीं । खोज से ज्ञात होता है कि अभिज्ञानशाकुन्तल के टीकाकार राघव भट्टने स्वयम्भू के गीति छन्द के लक्षण को उद्धृत किया है, जो यह प्रमाणित करता है कि कवि विशुद्ध मात्रा वृत्तों पर भी लिखा हैं और वह अंश प्रारम्भ के लुप्त २२ पत्रों में होना चाहिये । उनका समय तो ठीक-ठीक ज्ञात नहीं, पर श्रद्धेय प्रेमीजी के मतानुसार वे वि. सं. ७३४ और ८४० के बीच होना चाहिये । जयकीर्तिः– ये कन्नड प्रान्तवासी दिगम्बराचार्य हैं। इनके ग्रन्थ का नाम छन्दोनुशासन है । इसमें वैदिक छन्दों को छोड़कर केवल लौकिक छन्दों का वर्णन ८ अध्यायों में किया गया है । ग्रन्थ की विशेषता यह है कि अन्त के दो अध्यायों में इन्होंने कन्नड छन्दों का विवेचन किया है । ग्रन्थ की रचना पद्यात्मक है जिसमें अनुष्टुभ, आर्या और स्कन्धक छन्दों का विशेष प्रयोग किया गया है। हां, विशिष्ट बात यह है कि छन्दों का लक्षण पूरी तरह या आंशिक रूप में उसी छन्द में लिखा गया है । इस ग्रन्थ को छन्दों के विकास की दृष्टि से तथा कुछ हद तक समय की दृष्टि से भी केदारभट्ट के वृत्तरत्नाकर और हेमचन्द्र के छन्दोनुशासन के बीच की रचना कह सकते हैं । इनका समय १० वीं शता० या उससे कुछ पहले होना चाहिये, क्यों कि १० वीं शता० पूर्वार्ध के एक जैन कवि असग इनका उल्लेख करते हैं । प्रन्थ में माण्डव्य, पिङ्गल, जनाश्रय, सेतव, पूज्यपाद और जयदेव को पूर्वाचार्यों के रूप स्मरण किया गया है । छन्दोनुशासन की एक हस्तलिखित प्रति वि. सं. १९९२ की जैसलमेर के ग्रन्थ भण्डार से मिली है । १. पं नाथूराम प्रेमी: जैन साहित्य और इतिहास ( द्वि. सं. ) पृ० १९६-२११. २. प्रो. भायाणी, स्वयम्भू और प्राकृत छन्द, भारतीयविद्या, भा० भा० ८-१० पृ. १३९. ३. पं. नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ २११ (द्वि. सं. ) ४. जयदामन ( ? ) ५ जैन साहित्य और इतिहास, (द्वि. सं.) पृष्ठ ४०५ ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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