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________________ ६८० श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि स्मारक - प्रथ हिन्दी जैन 1 प्रकट किये हैं । यथार्थ में इन छन्दज्ञ विद्वानों ने यति की योजना का आविष्कार कर अनेक छन्दात्मक गीतों की उत्पत्ति में प्रेरणा प्रदान की है' । मात्रा छन्दों को द्विपदी - आर्या गीति आदि; चतुष्पदी मात्रासमक आदि; अर्धसमचतुष्पदी - वैतालीय आदि में विभक्त किया गया है । संस्कृत के मात्रा छन्दों की संख्या कुल मिला कर ४२ है और वे तालवृत्तों (ताल के अधीन छन्दों) और वर्णवृत्त के सांकर्य से बने हैं। अतः किसी प्रकार के संगीत के लिए उपयुक्त नहीं है । प्राकृत के मात्रा छन्द ताल संगीत के अनुकरण पर निर्मित होने के कारण संख्या में बहुत अधिक हैं । ऊपर्युक्त संक्षिप्त विश्लेषण से यह भली भांति विदित होता है कि सामान्य रूप से छन्दों के संस्कार में, परिवर्तन एवं परिवर्धन में जैन विद्वानों ने सक्रिय योगदान किया था । इन विद्वानों ने संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश के छन्दों पर कई महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे ह | संस्कृत छन्दों पर श्वेतपट जयदेव का छन्दशास्त्र ( लग० ई० ६०० - ९०० के बीच ), दिगम्बराचार्य जयकीर्ति का छन्दोनुशासन ( लग० १० वीं शता० का पूर्वार्ध) आचार्य हेमचन्द्रका छन्दोनुशासन (१२ वीं शता० ) अज्ञातकर्तृक ' रत्नमंजूषा ' (लग. १३ वीं शता० ) तथा अमरचन्द्रसूरिकृत ' छन्दोरत्नावली ' (१३ वीं शता० ) नामक ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं । प्राकृत और अपभ्रंश के छन्दों पर यद्यपि आ० हेमचन्द्र और अमरचन्द्रसूरि के ग्रन्थों से प्रकाश पड़ता है, पर दूसरे और भी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ मिले हैं, जैसे नन्दिताढ्य का ' गाहालक्खण ' (लग. ६ वीं शता० ) स्वयम्भू कवि का ' स्वयम्भूच्छन्द ' ( ८-९ वीं शता० ) अज्ञातकर्तृक 'कविदर्पण' ( लग. १३ वीं शता० ) राज ( रत्न) शेखरसूरि का 'छन्दोकोश' ( १५ वीं शता० ) और राजमल्ल पाण्डेय ( १७ वीं शता० ) । इनके अतिरिक्त वाग्भट कवि का 'छन्दोनुशासन ' रामविजयगणिका ' छन्दः शास्त्र, धर्मनन्दनगणि का ' छन्दस्तत्त्व ', अज्ञातकर्तृक ' छन्द:कन्दली ', एवं अज्ञातकर्तृक ' वृत्तस्वरूप ' नामक ग्रन्थों का पता ग्रन्थसूचियों से लगता है | महाकवि वाग्भटने अपने नेमिनिर्वाण काव्य के सप्तम सर्ग में लगभग ४४ छन्दों के उदाहरण पुरष्कृत किये हैं जिनमें प्रमाणिका, चन्द्रिका, नन्दिनी, अशोकमालिनी, शरमाला, अच्युत, सोमराजी, चण्डवृष्टि आदि कतिपय नयें छन्दों का प्रयोग किया गया है । यहां कतिपय छन्दकारों का परिचय और उनके ग्रन्थों की विशिष्टता के सम्बन्ध में कहा जाता है । १. जयदामन् की भूमिका पृष्ठ १८ २. प्रो. बेलणकर : छन्द और संगीत, पूना ओरियण्टलिस्ट भा. ८, सं० ३०४ पृ. २०२ प्र. ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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