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साहित्य ___ जैनाचार्यों की छन्दशास्त्र के लिये देन ।
६७९ ताल संगीत के सहारे ही हुआ है' । पीछे देशी भाषाओं के छन्द लावनी, दादरा, ठुमरी, झप आदि तालसंगीत पर ही बने हैं । यद्यपि जैन और बौद्ध सन्तोंने इन भाषा के छन्दों में अनेक रचनाएं की हैं, पर हमें यह मानना पड़ेगा कि उन सन्तों का प्रयत्न रागात्मक वस्तुदृष्टि से ताल संगीत के स्नेह के वश से न होकर जनता में अपना उपदेश प्रसार करने के लिए, उस पर उपदेशों का स्थायी प्रभाव डालने के लिए ही हुआ है। इस आशय से ही उनने जनप्रिय छन्दों का प्रयोग किया है ।
छन्दशास्त्र स्थूलरूप से दो भागों में विभक्त किया गया है-प्रथम वर्ण छन्द जिसे अक्षर छन्द या केवळ ' वृत्त ' नाम से कहते हैं । द्वितीय मात्रा छन्द जिसे 'जाति' नाम से भी कहते हैं। पादों की व्यवस्था के अनुसार वर्ण छन्दों को समवृत्त, विषमवृत्त और अर्ध समवृत्त के रूप में विभक्त किया गया है । प्राकृत छन्दों की अपेक्षा संस्कृत में समवृत्त छन्दों की संख्या बहुत अधिक है । विद्युन्माला, दोधक, उपजाति आदि इसके ही भेद हैं । विषमवृत्त-उद्गता आदि की संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है । उद्गता बहुत प्राचीन छन्द है जिसे अनेक महाकविओंने अपने काव्यों में प्रयुक्त किया है । जैन कवि वीरनन्दि ( १० वीं शता.) ने भी अपने काव्य चन्द्रप्रभचरित में इसका प्रयोग किया है। अर्धसमवृत छन्दों की संख्या विषमवृत्तों से कुछ अधिक है । इस वर्ग के वियोगिनी, पुष्पिताप्रा और मालधारिणी नामक छन्दों का प्रयोग संस्कृत के महाकवियोंने विशेषरूप से किया है। संस्कृत में अर्ध-समवृत्त छन्द की पुष्टि प्रायः प्राकृत के छन्दविद कवियोंने की है। आ० हेमचन्द्रने अन्य कवियों की अपेक्षा ऐसे छन्दों की संख्या अधिक दी है।
____ वर्ण वृत्तों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि प्रत्येक छन्द के प्रत्येक चरण में कुछ नियत स्थान पर यति-विराम की योजना होती है । यति का अर्थ छन्दज्ञ विद्वानोंने विच्छेद, विराम, या वाग्विराम किया है। हेमचन्द्रने इसकी एक सुन्दर व्याख्या ' श्रव्यो विरामो ' दी है। इस यति की योजना के सम्बन्ध में प्राचीन छन्दज्ञ विद्वानों में मतभेद है। जैन छन्दज्ञ स्वयम्भू कवि ने कुछ ऐसे मतों का उल्लेख करते हुए कहा है कि पुराने छन्दज्ञों में केवल श्वेतपट जयदेव और आ० पिङ्गल यति की योजना को आवश्यक मानते थे और भरत, काश्यप, सैतव तथा अन्य विद्वान् इसे आवश्यक नहीं मानते थे । जैन छन्दज्ञों में से जयदेव, स्वयम्भू, हेमचन्द्र और कवि दर्पणकारने यति की योजना के सम्बन्ध में अपने-अपने मत
१. प्रो. वेलणकर : छन्द और संगीत, पूना ओरियण्टलिस्ट, भाग ८, सं. ३-४, पृष्ठ २०२ प्रभृ. २. प्रो. रामनारायण पाठक, मात्रा छन्दों में जगण की स्थिति, भारतीय विद्या, भाग १. पृ. ५८ प्र. ३. प्रो. बेलणकर : जयदामन् की प्रस्तावना. पृ. १८ ।