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________________ ६७४ भीम विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन यहां स्मरणीय केवल यह है कि द्यानतराय जहां अपने पद के द्वारा उपदेश दे रहे हैं वहां संत रैदास अपने विषय में ही वर्णन कर रहे हैं। जैन कवियों की ऐसी रचनाएं हमें विक्रम की १९ वीं शताब्दी में भी मिलती हैं । इस काल के ऐसे कवियों में एक बुधजन है जिनकी प्रसिद्धि अधिकतर नीतिपरक रचनाओं पर आश्रित थी, किंतु जो समय-समय पर संतों जैसी कविताएं भी कर लिया करते थे। इनकी 'बुधजन सतसई ' के अंतर्गत जो दोहे संगृहीत हैं उनमें बहुत से ऐसे हैं जिनकी तुलना तुलसी, रहीम, कवीर अथवा वृंद की रचनाओं के साथ की जा सकती है। इनकी संत साहित्य के आदर्श पर लिखी गई रचनाएं विशेषतः उपदेशपरक हैं और वे चेतावनी का भी काम देती हैं । ये कबीर की भांति कहते हैं: कर लै हो जीव, सुकत का सौदा कर ले । परमारथ कारज करलै हो । व्यापारी वन आइयो, नर मव हाट मंझार । फलदायक व्यापार कर, नातर विपति तयार ॥ मोह नींद मां सोवता, डूबौ काल अटूट । बुधजन क्यों जागौ नही, कर्म करत है लूट ।' __इसी प्रकार दौलतराम नामक एक अन्य ऐसे कवि, अपने विषय में संकेत करते हुए भी, उसी शैली में कहते जान पड़ते हैं। ये सासनी के निवासी थे और पालीवाल थे तथा इन्हें जैन अध्यात्म का अच्छा ज्ञान भी था। इनकी एक लोकप्रिय रचना में ये पंक्तियां आती हैं: हम तो कबहूं न निज घर आये। पर घर फिरत बहुत दिन बीते, नाम अनेक धराये ॥ X यह बहु भूल भई हमरी फिर, कहा काज पछताये । दौलतजे अज हूं विषयन में, सतगुरु वचन सुहाये ॥ फिर एक अन्य ऐसे ही कवि ' ज्ञानानंद ' भी चेतावनी के रूप में कहते हैं: भोर भयो उठ जागो, मनुवा साहब नाम संभारो ॥ टेक ॥ सूतां सूतां रैन बिहानी, अब तुम नींद निवारो॥ खिन भर जो तूं याद करेगो, सुख निपजैगो सारो। वेला वीत्या है, पछतावै, क्यूं कर काज सुधारो ॥ आदि १. ' अध्यात्मपदावली', पृ० ५५८। २. वही, पृ० २३६। ३. वही, पृ. २७० ।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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