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________________ साहित्य हिन्दी और हिन्दी जैन साहित्य । ६३१ सामग्री अन्तर्हित है। सुभाषितों की किसी २ कवि की रचना में तो बहुत ही भरमार है, वैसे सुक्तियां प्रायः सभी की रचना में हैं। कविवर वनारसीदास, महाकवि आनंदधन, कविश्रेष्ठ द्यानतराय, योगीराज ज्ञानसार आदि की रचनाओं में कहीं २ रहस्यवाद भी ऊंचे स्तर का पाया जाता है। जिनेश्वर-भक्ति, तीर्थ-प्रेम संबंधी चौवीसियां, तीर्थ-गीत आदि धार्मिक और वर्णनात्मक होने से कई रचनायें काव्य का रसानंद तो नहीं दे सकती हैं। परन्तु मूर्तिउपासक भक्तों के लिये एवं सगुण मार्ग के अनुयायियों के लिये तो बड़ी ही आह्लादक और प्रेरणादायक हैं। एक नवीन बात जो यतिश्री कनककुशल के परिचय में पाठकों को पढ़ने को मिलेगी, यहां उस पर कुछ कहना आवश्यक प्रतीत होता है। जैन विद्वान् सदा से उदार रहे और जिस युग में जो भाषा प्रधान बनी, उन्होंने उसी भाषा में जैन साहित्य की रचना की है। जब ब्रज अपने ऊंचे स्तर पर थी और सूर आदि जैनेतर महाकवियों ने उसमें रचनायें की, जैन विद्वान् भी उसकी सेवा करने में पीछे नहीं रहे। कच्छ के नृपति लखपत (राज्यकाल १७९८ से १८१७ ) ने अपने गुरु कनककुशल की तत्त्वावधानता में एक ब्रज-भाषा शिक्षणालय की स्थापना की थी। इस शिक्षणालय में छंद और काव्यों का अच्छा अध्यापन करवाया जाता था। यति कनककुशल की परंपरा में यह विद्यालय बराबर लगभग २०० वर्ष चलता रहा । गुजरात, राजस्थान आदि दूर-दूर से विद्यार्थी यहां आते थे । आज से कुछ वर्षों पूर्व तक यह विद्यालय जीवित अवश्य था, चाहे वैसा प्रगतिशील नहीं भी होगा । जैनेतर विद्वानों ने ब्रज में साहित्य-रचना तो अनूठी की है। परन्तु उनके द्वारा व्रज की ऐसी सेवा अहिन्दी प्रदेश में कहीं हुई, हमारे जानने में अभी तक तो नहीं आई । गूजराती व राजस्थानी व ब्रज भाषा का शिक्षण देना बड़ा महत्व का कार्य है । इस दृष्टि से हिन्दी के लिये हिन्दी जैन विद्वानों का यह ब्रज-भाषा-प्रचार का कार्य कम महत्त्व एवं कम हितकर नहीं है । आधुनिक हिन्दी कवि अथवा लेखक संबंधी योग्य सामग्री के अभाव में हम जैन आधुनिक हिन्दी-साहित्य पर कुछ भी नहीं लिख सकते । कविवर ज्ञानानंद, पं० टोडरमल और चिदानंद योगीराज का ही हम इस काल के अद्भुत कवियो में परिचय दे सके हैं। चौधरी रायमल्ल अग्रोतान्वय-गोयलगोत्रीय नानू पत्नी ओढरही के आप ज्येष्ठ पुत्र थे। श्वेताम्बर विद्वान् कवि पद्मसुन्दर और आप में अनूठा प्रेम था। पद्मसुन्दर सम्राट अकबर के समय में प्रथम श्रेणि के विद्वानों में पाये जाते हैं। इनका जन्म १६ वीं शताब्दी में हुआ है और इनका रचना-काल सं. १६१५ से ३३ है। इनकी सात रचनायें उपलब्ध हैं:-१ - नेमीश्वर रास'
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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