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________________ ६३० श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ हिन्दी जैन उदयचंद ( खरतर ) ने वि. सं. १७२८ में अनूपरसाल', 'वीकानेर गजल' लिखे । ये बीकानेर के यति थे। जिनसमुद्रसूरिने जैसलमेर में सं० १७३० में 'तत्त्वप्रबोध ' नाटक लिखा तथा 'वैद्यचिन्तामणि, नारीगजल, वैराग्यशतक, सर्वार्थसिद्धि टीका ' रची हैं। ___ मान कवि ( विजयगच्छीय ) ने 'राजविलास' और सं० १७३० में 'विहारीसतसई टीका ' रची। केशवदासने वि. सं. १७३६ में केशवबावनी' रची। कवि लालचंदने वि. सं. १७३६ में बीकानेर में ' लीलावती ' तथा सं० १७५३ में 'स्वरोदय' लिखा। मान कवि ( खरतर ) ने 'संयोगद्वात्रिंशका' सं० १७३१ में, लाहोर में सं० १७४५ में ' कविविनोद' और सं० १७४६बीकानेर में ' कविप्रमोद ' लिखे । खेतल कविने सं० १७४८ में 'चितौड़गढ़ गजल ' और सं० १७५७ में ' उदयपुर गजल' रची। विनयचंद्रने सं० १७५५ के लगभग 'राजुलरहनेमिगीत' तथा 'बारहमासा' रचा। कवि रत्नशेखरने सूरत में सं० १७६१ में 'रत्नपरीक्षा ' लिखी। दुर्गादासने सं० १७६५ में मरोठ गजल ' रची। समर्थ कविने सं० १७६५ में देरा (सिंघ ) में ' रसमंजरी' रची। कवि लक्ष्मीचंद (अपरविजय शिष्य खरतर) ने सं० १७८० में 'आगरा गजल' रची। गुणविलासने वि. सं. १७९० में 'चौवीसी ' रची । महो० रूपचंद (श्वे०) ने सं. १७९२ में बनारसीदासकृत 'समयसार' की टीका रची। उपरोक्त स्चनाओं में वैद्यक, छंद, कथा, कोष, ज्योतिष, इतिहास, चरित, आख्यायिका, वार्ता, गणित आदि विषयक एवं धार्मिक, आध्यात्मिक स्तवन, गीत, पद, चौवीसी, बत्तीसी, छत्रीसी, बहोत्तरी लघु-बड़ी विविध विषयों की कृतियां हैं। लगभग एक सहस्र विविध विषयक हिन्दी रचनाओं के कर्ता दि. श्वे. हिन्दी-जैन-कवि और लेखकों में से हम स्थानाभाव से मात्र कुछ नाम ऊपर दे सके हैं और कुछ आध्यात्मिक विशिष्ट कवि और लेखकों का परिचय थोड़े से विस्तार से हम आगे दे रहे हैं । __ कुछ आध्यात्मिक कवि और लेखक हम नीचे जिन ग्रंथकारों के परिचय दे रहे हैं, वे जैन हिन्दी विद्वानों में अधिक सिद्ध लेखक और कवि हैं । इनकी रचनाओं में आत्म-दर्शन, आत्मतत्त्व विषयक अधिक
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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