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________________ ६३२ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि - स्मारक -ग्रंथ हिन्दी जैन (सं. १६१५), २ ' हनुमत कथा ' ३ ' प्रद्युम्न चरित्र '४' सुदर्शन रासो ', ५ 'निर्दोष सप्तमी व्रत कथा ', ६' श्रीपाल रासो' और ७ ' भविष्यदत्त कथा ' ( १६३३ ) । ये जयपुर राज्य के रहनेवाले थे । इनके जन्म-ग्राम का पता लगना अभी शेष है । कविवर की रचनाओं में कई ऐतिहासिक तथ्य भी प्राप्त होते हैं। आपने अकबर सम्राट् के शासन काल का भी वर्णन किया है । विशेष परिचय के लिये देखिये वीर - वाणी वर्ष २ । १७-१८ दिसम्बर सन् १९४८ । कविवर समयसुन्दर मरुर प्रान्त के प्राचीन एवं ऐतिहासिक नगर साचौर में आपका जन्म वि. सं. १६२० के लगभग प्राग्वाटज्ञातीय श्रेष्ठी रूपसी की धर्मपत्नी लीलादे अपर नाम धर्मश्री नाम की सुशीला गृहिणी से हुआ था | युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के करकमलों से आपने जैन दीक्षा ग्रहण की थी और गणि सकलचन्द्रजी के आप शिष्यरूप से प्रसिद्ध हुये थे । सूरिजी के प्रधान शिष्य महिमराज और समयराज की तत्त्वावधानता में आपका विद्याध्ययन हुआ था । संस्कृत, प्राकृत, गूर्जर, राजस्थानी, हिन्दी, सिंधी तथा पारसी भाषा पर आपका अच्छा अधि. कार था और छन्द, अलंकार, व्याकरण, ज्योतिष, जैन साहित्य, अनेकार्थ आदि आपका विविध विषयक पाण्डित्य आप की उपलब्ध-कृतियों से भलीविध सिद्ध होता है । आपका ' अष्टलक्षी ' ग्रन्थ जैन साहित्य में अति ही प्रसिद्ध है । इस ग्रन्थ में ' राजानो ददते सौख्यं ' इस आठ अक्षर के पद के आपने १०,२२,४०७ अर्थ किये हैं । काश्मीर विजय के लिये जाते समय सम्राट् अकबरने श्रीरामदास की बाटिका में श्रावण शु. १३ को संध्यासमय कविवर के मुख से इस अद्भुत ग्रन्थ को सामंत, मण्डलिक एवं विद्वानों की उपस्थिति में श्रवण किया था और वह बड़ा ही आश्चर्यचकित हुआ था । संस्कृत में छोटे-बड़े आपके रचित ग्रन्थों की संख्या २५ है । अन्य ग्रन्थ आपके इस प्रकार हैं: - टीकायें १९, संग्रह ग्रंथ १, बालावबोध १, रास- चौपाई आदि २३, छत्तीसियां ७, देसाई ६, रास ८ हैं | कविवरने जिस प्रकार मौलिक ग्रन्थों की रचना की है, अन्य कवियों द्वारा रचित ग्रन्थों की उसी उत्साह से स्वस्त से प्रतिलिपियां भी की है । नाइटासंग्रह में ऐसी विविध भांति की १४ प्रतियां तथा अन्यत्र प्राप्त ३० प्रतियां विद्यमान है। आप द्वारा संशोधित ५ ग्रन्थों की भी प्रतियां उपलब्ध हैं। उक्त तालिका से ही सहज ही में कविवर का साहित्यानुराग, गम्भीर पाण्डित्य एवं विविध भाषा विषयक और विषयविषयक ज्ञान समझा जा सकता है । यह साहित्य महारथी जैन विद्वान् जगत में परवर्त्ती महाविद्वान् उपा० यशो
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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