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गुरुगुणाष्टक और स्मरणाअलि ।
(२)
गुरुदेव की दिनचर्या की एक झाँकी ।
[मुनिश्री सागरानन्दविजयजी ]
हे दिवंगतात्मा गुरुदेव ! जब आपके जीवन की एक दिन की चर्या को भी हम स्मृत करते हैं तो अच्छी से अच्छी समय देनेवाली बहूमूल्य घड़ी भी कभी गतिविधि में हीन रह जाय; परन्तु आपकी दिनचर्या की सरलता तो निर्बाध ओर-छोर सदा पहुँचती देखी गई। शयन से उत्थान, प्रतिक्रमण, वंदन, बहिरगमन, स्वाध्याय, व्याख्यान, आहार, विश्राम, लेखन, आलोयण आदि सर्व दैनिक क्रियाओं में हमने कड़ी फंदती देखी, जीवनपलता देखा, धर्म जगता देखा, लोकजीवन की समस्याओं पर विचार बढ़ता देखा, सुधार होता देखा और देखा भावी संतति के हित हितोपदेश की रचना और वर्तमान से संघर्षमयी संकल्पव्रत ।
हे त्यागमूर्ति, विरक्तात्मा, सच्चे साधु की प्रतिमा, सरस्वती के एकनिष्ठ पूजारी, आगमों के ज्ञाता, ज्योतिष के महाविद्वान् ! आज तुम्हारे स्मरणमें यह स्मृति-पंक्तियां अर्पित करता हुआ अपने को धन्य मानता हूँ।