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________________ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रंथ स्मरणाञ्जलि हिन्दी क्रियावंतविभूति श्रीमद् राजेन्द्रसूरि [मुनिश्री विद्याविजयजी 'पथिक' राजगढ़ ] शार्दूलवृत है आध्यात्मिक ज्ञान-कीर्तिविमला वैराग्य में संभवा, होते योग-विधान-निष्ठ तप से ज्ञानी विरागी महा । वे योगी कहते सदा जगत का उत्थान है त्याग में, मेरी आज उन्हीं विभूति-पद में सद्भक्ति श्रद्धाञ्जली ।। कायाकल्प किया, जिनेन्द्र जपसे, ज्ञानी व ध्यानी बने, देखी श्री यति-धर्म की शिथिलता थी दी उसे भी मिटा । साध्वाचार-विधान पालन किया उत्कृष्टता से स्वयं, मेरी आज उन्हीं विभूति-पदमें सद्भक्ति श्रद्धाञ्जली ।। जैनाचार्यबृहत्तपाधिपति श्रीराजेन्द्रसूरीश थे, विद्वत्ता अति आप की विलसती, थे तत्वदर्शी बड़े । 'श्रीराजेन्द्र सुकोष' शब्द-रचना जैनागमों से करी, मेरी आज उन्हीं विभूति- पदमें सद्भक्ति श्रद्धाञ्जली ॥ औरोंको अनमोल वीर प्रभु का संदेश प्यारा सुना, धर्मोपासक जैन श्रावक किये जैसे चिरोला बना । की सेवा जिनशासनानुपमकी स्याद्वाद-सिद्धान्त में, मेरी आज उन्हीं विभूति-पद में सद्भक्ति श्रद्धाञ्जली ॥ श्रद्धा धैर्य विशिष्ट भाव उनके प्रोत्फुल्ल थे भाषते, आत्मोद्धारक तत्वदृष्टि रखके की ईश की साधना । यों प्रोत्साहित बोलती चमकती साहित्य की पंक्तियाँ, मेरी आज उन्हीं विभूति-पद में सद्भक्ति श्रद्धाञ्जली ॥
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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