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________________ राजस्थान के जैन मन्दिर ( जयपुर रेडियो से प्रचारित) श्री पूर्णचन्द्र जैन विश्व के इतिहास में भारत का बहुत ऊंचा व बड़ा स्थान है । वह उसकी प्राचीनता से अधिक विश्व-मानव को उसने जो बड़ी देन दी उस कारण है । अभी तक जिसे हम दोअढाई हजार वर्ष का इतिहाससम्मत काल मानते थे, मोहनजोदडो व हरप्पा की खुदाईने उसे पांच-सात हजार वर्ष प्राचीन तो सिद्धकर दिया है। एक लेखक के शब्दों में अब हम भी सुमेर, अवकाद और बेबिलोनियनों के मुकाबले में अपने खण्डहरों की बुजुर्गी से भी अपना बड़प्पन प्रमाणित कर सकते हैं । कहना नहीं होगा कि भारतीय संस्कृति के इतिहास में उसकी तीन जैन, वैदिक और बौद्ध धाराओं का ही बड़ा भाग है तथा इस दृष्टि से जैनसंस्कृति विश्व के इतिहास में अपनी विशेषता रखती है। मोहनजोदडो में जो मूर्तियां मिली उनमें प्लेट १२ से १५ तथा १८, १६ और २२ को देखने से जाहिर होता है कि वे जैन मूर्तियां हैं, क्यों कि खड़ी अवस्था में ध्यान मग्न मूर्तियां जिन के बाहु आजानु नीचे लटकते हुये हों, पलकें इस प्रकार झुकी हुई हों कि दृष्टि का केन्द्र नासिकाग्र भाग पर हो, यह जैन मूर्तियों की तक्षणशैली की विशेषता है। यह सामग्री समग्र भारतीय के साथ जैन संस्कृति के इतिहास की प्राचीनता को भी सिद्ध करती है। भारतीय धर्म और संस्कृति की परंपरा में श्रमणसंस्कृति का अपनी प्राचीनता, अपने विशिष्ट तत्वज्ञान तथा दर्शन और अपनी कलाप्रियता तथा साहित्यिक अस्मिता, राष्ट्रीय भावना और राष्ट्र के लिए की गई सेवाओं आदि के कारण अपना महत्व का और गौरवमय स्थान है। हिंसा, काम आदि मानवीय मानसिक व चित्त की दुर्बलताओं पर तप, साधना और संयम द्वारा विजय पाने के सिद्धांत पर आधारित जैन संस्कृति की भारतीय संस्कृति पर बड़ी छाप है। इसका पुनर्जीवन और पुनरोदय पार्श्वनाथ और महावीरस्वामी द्वारा पूर्वी भारत में मगध व बिहार में हुआ। लेकिन बाद में इसका विकास क्षेत्र मुख्यतः पश्चिमी और दक्षिण भारत रहा। मुसलमान काल में और उससे पूर्व भी पुष्प(प्य)मित्र जैसे राजाओं की धर्मान्धता तथा शंकराचार्य जैसे विद्वानों की एकांग दृष्टि और कट्टरता के कारण जैनों को स्थानान्तर करना पड़ा। जैन जहां-जहां और जब-जब पहुंचे वहां-वहां और उस-उस समय में उन्होंने अपनी शिल्प, स्थापत्य, चित्र, साहित्यसृजन (७६)
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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