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________________ तीर्थ-मंदिर राजस्थान के जैन मन्दिर । ६०३ आदि संबंधी कला-भावना, धर्माचरण और धर्म-श्रद्धा भावना तथा सेवा और तन, मन, धन की उत्सर्ग भावना का विशेष उज्ज्वल उदाहरण प्रस्तुत किया है। गहराई से देखेंगे तो भारतीय शिल्प, स्थापत्य, भारतीय चित्रकला, भारतीय वाङ्मय और साहित्य में जैन-वीरों और कर्मवीरों की बहुत बड़ी देन रही है। और जैन संस्कृति की शिल्स, स्थापत्य, साहित्य आदि की सामग्री के इतिहास से ही भारतीय संस्कृति का एक शृंखलाबद्ध इतिहास बन सकता है। इस ओर कम दृष्टि गई है इस कारण भी मारत का इतिहास क्रमबद्ध नहीं -सा मिल रहा है । पश्चिम भारत में वर्तमान मालवा प्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैनधर्म और संस्कृति के विस्तार-विकास के क्षेत्र रहे हैं । सिंधु सौवीर, जिस में आज के जैसलमेर और कच्छ के भाग सामिल थे उसमें प्रतापी राजा उदाइन के जैन धर्म स्वीकार कर लेने से अपनी राजधानी में उसके द्वारा जैन मूर्ति की स्थापना और एक बार महावीरस्वामी के उधर के विहार की बात जो अभी इतिहासकारों में विवादास्पद हैं, किन्तु विराटनगर के अशोकचक्र के शासन-लेखों से भी प्राचीन अजमेर जिले में बडली के शिलालेख से यह अब निर्विवाद स्पष्ट है कि ईसा से पांचवीं शताब्दी के पूर्व भी पश्चिम भारत में जैन धर्म का प्रचार हो चुका था । लिपि शास्त्रज्ञ बडली के उस लेख की लिपि को अशोक के लेखों की लिपि से भी पूर्व की ब्राह्मी लिपि मानते हैं और वह लेख महावीर संवत् से ८४ वर्ष अर्थात् इ० पू० ५२७-८४ = ४४३ का संकेत देता है। श्रावस्ती ( वर्तमान इलाहाबाद ) के पास तक महावीरस्वामी के विहार करते हुये आने की बात तो इतिहास-सम्मत है । पर वहां से आगे पश्चिम भारत में आने की बात अभी विवादग्रस्त है। फिर भी मथुरा, हस्तिनापुर, आदि में जैन धर्म का खूब प्रचार हो गया था और बड़ा प्रभाव था । यह वहां मिलनेवाली मूर्तियों, शिलालेख आदि से स्पष्ट है। और यह संभव नहीं कि जो क्षेत्र आज राजस्थान कहलाता है वह मथुरा के इतने सन्निकट होते हुये उस प्रभाव और उस प्रसार से अछूता रहा ही । फिर भी मावीरस्वामी के समय से लगभग बारह सौ तेरहसौ वर्ष बाद तक जैनियों के इस प्रदेश में रहने-फैलने के प्रमाण छुटपुट ही मिलते हैं। उसके बाद के अर्थात् नवीं, ग्यारवीं शताब्दी के पीछे के तो शिलालेख, प्रतिमाओं के लेख आदि प्रचुर परिमाण में मिलते हैं। राजस्थान में मुख्यतः मारवाड़, मेवाड़, मेवात, हाडौती आदि क्षेत्र हैं। मारवाड़ में जोधपुर व बीकानेर के उत्तरी भाग जांगल प्रदेश आदि शामिल हैं जिनकी राजधानी कभी अहिछत्रपुर ( वर्तमान नागोर ) थी। इसी के पास सपादलक्ष क्षेत्र था। आज का जैसलमेर, माड, वल्ल व भवाणी नाम से प्रसिद्ध था। मेवाड़ को मेदपाट तथा उसके कुछ हिस्से व श्रीमाल-भिन्नमाल आदि को प्राग्वाट कहते थे। चितौड़ या चित्रकूट के आसपास का क्षेत्र
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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