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________________ ५६८ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसरि-स्मारक-ग्रंथ जैनधर्म की प्राचीनता बल, दस बल, झाड़, दस झाड़, भोर, दस भीर, वज्र, दस वज्र, लोट, दस लोट, नजे, दस नजे, पट, दस पट, तम, दस तम, दम्भ, दस गुम्भ, कैक, दस कैक, अमित, दस अमित, गोल, दस गोल, परामित, दस परामित, अनन्त, दस अनन्त यहां-तक की संख्याओं की नामावली दी है । अन्तिम 'अनन्त' शब्द से संख्या की यहां समाप्ति हुई समझिए। एक अन्य ग्रन्थ में दशांक संख्या बतलाते हुए संख्याओं के नाम निम्नोक्त दिए हैंसौ सौ हजार = एक करोड़ महावृन्द सौ हजार = १ पद्म करोड़ सौ हजार = एक शंकू पद्म सौ हजार =१ महापद्म शंकू सौ हजार = एक महाशंकू महापद्म सौ हजार = १ खर्व महाशंकू सो हजार= एक वृन्द खर्व सौ हजार = १ समुद्र वृन्द सौ हजार = एक महावृन्द समुद्र सौ हजार = महोष बौद्ध ग्रन्थों में गणना-प्रणाली के निम्नोक्त संख्याओं तक के नाम मिलते हैं:(१) एक १, (१५) अब्बुद=(१०००००००) ८ (२) दस १० (१६) निरब्बुद=(१०००००००)९ (३) सौ १००, १ (१७) अहह=(१०००००००) १० (४) सहस्स=१००० (१८) अबब=(१०००००००) ११ (५) दस सहस्स-१०००० (१९) अटट=(१०००००००) १२ (६) सतसहस्स%१००००० (२०) सोगन्धिक-(१०००००००) १३ (७) दस सत सहस्स=१०००००० (२१) उप्पल=(१०००००००)१४ (८) कोटि=१००००००० (२२) कुमुद (१०००००००) १५ (९) पकोटि=(१०००००००)२ (२३) पुंडरीक-(१०००००००) १६ (१०) कोटिप्पकोटि-(१०००००००) ३ (२४) पदुम=(१०००००००) १७ (११) नहुत=(१०००००००)४ (२५) कथान=(१०००००००) १८ (१२) निनहुत=(१०००००००) ५ (२६) महाकथान=(१०००००००) १९ (१३) अखोमिनी ( १०००००००) ६ (२७) असंख्येय=(१०००००००) २० (१४) बिन्दु=(१०००००००) ७ विज्ञान ने आज अनेक विषयों में असाधारण उन्नति की है। गणना-बुद्धि का भी बहुत अधिक विस्तार हुआ है, फिर भी जितनी लम्बी संख्याओं के नाम क्रमिक रूप में जैन प्रन्थों में मिले हैं वहाँ तक पाश्चात्य देशों की गणना-पद्धति भी नहीं पहुंच पाई है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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