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और उसका प्रसार
जैनागमों में महत्त्वपूर्ण काल-गणना |
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उत्तर - ' वह भी नहीं, क्यों कि अनन्त परमाणु संघातों के एकत्रित होने पर वहां रुंआं बनता है | अतः रोंयें का प्रथम परमाणु- संघात जबतक नहीं टूटता तबतक नीचे का संघात नहीं टूट सकता । ऊपर का संघात एक काल में टूटता है, नीचे का संघात उससे भिन्न दूसरे काल में । इस लिए एक रोंयें के टूटने की क्रियावाला काल भी समय- संज्ञक नहीं हो सकता । '
अर्थात् एक रोयें के टूटने में जितना समय लगता है उससे भी अत्यन्त सूक्ष्मतर काल को' समय ' कहते हैं । जैन दर्शन में मनुष्य आँख बन्ध कर खोलता है या पलकें मारता है, इस क्रिया में लगने वाले काल में असंख्यात समय का बीत जाना बतलाया गया है । आज तो इसकी सूक्ष्मता का कुछ आभास हम वैज्ञानिक आविष्कारों से और भी अच्छे रूप में पा लेते हैं-जैसे रेडियो में हजार मील की अवाज कुछ सैंकण्डों में ही हमें सुनाई देती हैं। अब सूक्ष्म स्थान से दूसरे सूक्ष्म स्थान में कितना समय लगे, इसका उपर्युक्त उदाहरण से पाठकों को जैन-दर्शन के समय की सूक्ष्मता के कुछ आभास से अवश्य मिल सकता है । ये दृष्टान्त केवल विषय को बोधगम्य करने के लिए ही दिये गये हैं, समय का वास्तविक स्वरूप तो कल्पनातीत है ।
भारतीय गणित में भारतीय गणित की संख्या में दस गुने की संख्या की परिपाटी है जिस में एक, दश, सौ, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख, करोड़, दस करोड़, अरब ( अब्ज ), दस अरब, खरब ( ख ), दस खरब, पद्म, दस पद्म, नील, दस नील, शंख, दस शंख तक की ( १८ अंकों की ) गणना प्रसिद्ध है । पर अमलसिद्धि और लीलावती' ग्रन्थ में इसके आगे की कुछ संख्याओं के भी नाम मिलते हैं । लीलावती के अनुसार दस शंख के बाद की संख्याओं को क्षिति, महाक्षिति, निधि, महानिधि, कल्प, महाकल्प, घन, महाघन, रूप, महारूप, विस्तार, महाविस्तार, उकार, महा उकार और औंकार शक्ति तक की संख्याओं के नाम होते हैं ।
अलसिद्धि में दस शंख के पश्चात् क्षिति, दसक्षिति, क्षोभ, दस क्षोभ, रिद्धि दसरिद्धि, सिद्धि, दस सिद्धि, निधि, दस निधि, क्षोणि, दस क्षोणि, कल्प, दस कल्प, प्राहि, दस प्राहि, ब्रह्मांड, दस ब्रह्मांड, रूद्र, दस रूद्र, ताल, दस ताल, भार, दस भार, बुर्ज, दस बुर्ज, घन्टा, दस घन्टा, मील, दस मील, पचूर, दस पचूर, लय, दस लय, कार, दस कार, अपार, दस अपार, नट, दस नट, गिरि, दस गिरि, मन, दस मन, बन, दस बन, शंकू, दस शंकू, बाप, दस बाप,
१. लीलावती में दस हजार को अयुत, दस लाख को प्रयुत, अरब को अरबुज, नील को क्षोणि संज्ञा दी है । खर्व की आगे की संख्याओं के नाम निखर्व, महापद्म, शंकु, जलधि, अंत्य, मध्य और परार्द्ध भी मिलते हैं।