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________________ राजस्थान में जैनधर्म का ऐतिहासिक महत्त्व कैलाशचन्द जैन, जयपुर राजस्थान में पांचवीं शताब्दी पूर्व जैनधर्म के प्रचलित होने का ठोस प्रमाण बड़ली का शिलालेख है। इसके पश्चात् छट्ठी शताब्दी तक इस धर्म का न तो साहित्यिक और न शिलालेखादि का ठोस प्रमाण मिलता है, किन्तु इस समय यह सीमांत प्रदेशों में जैसे पंजाब, सिंध, गुजरात, उत्तर प्रदेश तथा मालवा में बहुत प्रचलित था। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रमाण नहीं मिलने पर भी राजस्थान इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता है। सातवीं शताब्दी से वर्तमान समय तक यहां पर यह धर्म साधुओं के उच्च व्यक्तित्व, राजाओं तथा शासकों के सहयोग तथा धनिकों की दानशीलता से बहुत फलाफूला । भव्य मन्दिरों का निर्माण किया गया तथा उनमें अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा की गई । असंख्य शास्त्रों को लिपिबद्ध करवाया गया तथा उनके लिए शास्त्रभंडार स्थान-स्थान पर स्थापित किए गए । इस धर्म का प्रभाव राजस्थान के जनसाधारण पर पड़ा तथा उन्होंने मांस, मदिरा को त्याग दिया। महावीर के समय जैनधर्म:-भारतीय इतिहास का ऐतिहासिक युग करीब महावीर के समय से प्रारंभ होता है । इस समय सिंधुसौवीर पर उदाइन नाम का प्रतापी राजा राज्य करता था । वह जैनधर्म का अनुयायी हो गया और उसने एक विशाल मंदिर पूजा के लिए अपनी राजधानी में बनवाया । एक बार महावीरस्वामी स्वयं उसकी राजधानी में आये तथा उनसे उसने साधु दीक्षा लेली । विद्वानों के मतानुसार जैसलमेर और कच्छ के हिस्से उस समय सौवीर में शामिल थे। ___भीनमाल के १२७६ के शिलालेख से पता चलता है कि महावीरस्वामी स्वयं श्रीमालनगर पधारे थे । श्रीमालमाहात्म्य में श्रीमाल में जैनधर्म के विकास का उल्लेख आया है। इसके अनुसार गौतम श्रीमाल के ब्राह्मणों के व्यवहार से असंतुष्ट हो कर काश्मीर गया, जहां पर महावीरने उसको जैनधर्मावलम्बी बना लिया । श्रीमाल लौटने पर उसने वैश्यों को जैनी बनाया तथा कल्पसूत्र, भगवतीसूत्र, महावीरज्ञानसूत्र आदि ग्रंथों की रचना की। १. भारतीय प्राचीन लिपिमाला पृ २. डा. सरकार के अनुसार यह जैन शिलालेख नहीं है, किंतु उसके विचार ठीक प्रतीत नहीं होते हैं। देखो, JBORS. March. 1954, P. 8. २. Ancient India by Tribhuvanlal shah, vol. 1. P. 215. (७०)
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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