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________________ और उसका प्रसार जैनधर्म की ऐतिहासिक खोज । ५२१ सहज ही में अनुमान लग जाता है । ब्राह्मणों को स्वर्ग के स्वप्न आते थे, किन्तु मुक्ति का 1 नाम तो उन्हें केवल व्रात्य संप्रदाय से सुनने को मिला था । उन्हें तो केवल यज्ञ, बलि, कामना, स्वर्ग, देव और सोमपान तथा भूतस्तुति ही धर्म के रूप में मान्य थी । यज्ञ में ब्राह्मण किस प्रकार हिंसा करते थे और फिर हिंसा से अहिंसा की ओर किस प्रकार उन्मुख हुए उसका स्पष्ट विवरण शतपथ ब्राह्मण में क्रमश: स्वरूप दिया गया है । 66 " आदिकाल में बलि के लिए पुरुष ( परमात्मा ) परन्तु वह तन्ना रोचत " वह उसको अच्छा नहीं लगा। फिर वह गौ के शरीर में गया, वह भी अच्छा नहीं लगा। उसके बाद घोड़े, भेड़, बकरी के शरीर को छोड़ा और अन्त में उसने औषधियों में प्रवेश कियायह उसे अच्छा लगा । " शतपथ ब्राह्मण के इस छोटे से उपाख्यान में हजारों और लाखों वर्षों का इतिहास बन्द है, जिसमें व्रात्यों के प्रभाव के कारण आर्य यज्ञ में नरमेध करते-करते पशु तथा फल-फूल पर उतर आये और इन वनस्पतियों एवं पशुयज्ञ के लिए शतपथ और तैत्तरीय ब्राह्मण ग्रन्थों में नरमेध, अजमेध, गौमेव में पशुओं के संज्ञापन वध की आज्ञा को देखना चाहिए। पारस्करीय ग्रह - सूत्र में अष्ट का श्राद्ध, शूलगव कर्म और अंत्येष्टि - संस्कार को गाय, बकरे जैसे पशुओं के मांस, चर्बी आदि से निष्पन्न करने की आज्ञा दी है । किन्तु याग विरोधी भावना को महाभारत काल तक कितना प्रश्रय मिल चुका था - इसका विवरण मत्स्य - पुराण श्लोक १२१, भागवत पुराण स्कंध ७ - १५ श्लोक ७-११, अनुशासन पर्व १७७, श्लोक ५४ को देखना चाहिए । afe और हवि देकर यज्ञ करने लगे । श्री सम्पूर्णानन्द लिखित " आर्यों का आदि देश ६ - २३८ - यज्ञों का पशुवध किस प्रकार रुकता गया है और व्रात्यों का भारत पर किस प्रकार वर्चस्व बढ़ता गया है। इसका संकेत ऋग्वेद के उपरोक्त मन्त्र के ' यति ' शब्द से प्राप्त होता है । यति व्रात्य का दूसरा नाम है । " आर्यों की धार्मिक मान्यता - आर्य ब्राह्मण और भारत के आदिवासी आर्य ( सैन्धव - द्रविड़ ) परस्पर में प्रादेशिक विभिन्नता ही नहीं रखते थे अपितु उनमें मौलिक मतभेद था । सिद्धान्त, मान्यता तथा विश्वासों में महान अन्तर था । आर्यब्राह्मणों का जीवन कामनाप्रधान, विजयाकांक्षा तथा ६६
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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