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________________ और जैनाचार्य युगपुरुष श्री राजेन्द्रसूरि । ४९५ स्थानकवासी मुनिवर श्रीरत्नचन्द्रजी स्वामीने जिनागमशब्दकोश आदि कोश और आगमोद्धारक आचार्यवर श्रीसागरानन्दसूरि महाराजने अल्पपरिचितसैद्धान्तिकशब्दकोश आदि प्राकृत भाषा के शब्दकोश तैयार किये हैं, किन्तु इन सबों की कोशनिर्माण की भावना के बीजरूप आदि कारण तो श्रीराजेन्द्रसूरि महाराज एवं उनका निर्माण किया अभिधानराजेन्द्रकोश ही है। विविधकोश निर्माण के इस युग में संभव है कि भविष्य में और भी प्राकृत भाषा के विविध कोशों का निर्माण होगा ही, फिर भी अभिधानराजेन्द्रकोश की महत्ता, व्यापकता एवं उपयोगिता कभी भी घटनेवाली नहीं है, ऐसी इस कोश की रचना है। यह अभिधान कोश मात्र शब्दकोश नहीं है, वह जैन विश्वकोश है। जैनशास्त्रों के कोई भी विषय की आव. श्यकता हो, इस कोश में से शब्द निकालते ही उस विषय का पर्याप्त परिचय प्राप्त हो जायगा । आज के जैन-अजैन, पाश्चात्य-पौर्वात्य सभी विद्वानों के लिये यह कोश सिर्फ महत्त्व का शब्दकोश मात्र नहीं, किन्तु महत्त्व का महाशास्त्र बन गया है। यही कारण है कि अभिधानराजेन्द्रकोश आज एतद्देशीय और पाश्चात्यदेशीय सभी विद्वानों की स्तुति एवं आदर का पात्र बन गया है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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