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________________ ४९४ श्रीमद् विजयराजेन्द्रसरि-स्मारक-ग्रंथ जिन, जैनागन बिंदुओं को नजर में रखते हुए आचार्य ने इस व्याकरण का निर्माण किया है। प्राकृतभाषा विश्वतोमुखी एवं बहुरूपी भाषा होने के कारण यद्यपि इसका परिपूर्णतया विधानात्मक व्याकरण बनाने का कार्य अति दुष्कर ही था, फिर भी आचार्य श्री हेमचन्द्रने अपनी समृद्ध विद्वत्ता के द्वारा इसका बीजरूप संग्रह एवं निर्माण सर्वश्रेष्ठ रीत्या कर दिया है, जिससे हेमचन्द्र के व्याकरण में आर्ष, देश्य आदि विविध प्रयोगों के विधान का संग्रह एवं समावेश हो गया है। स्थानकवासी विद्वद्भूषण कविवर श्री रत्नचन्द्रजी स्वामीने अपने आर्षप्राकृत व्याकरण में इन्हीं आर्ष प्रयोगादि को सुचारु रीत्या पल्लवित किया है। पंडित बेचरदासजी दोसी, आचार्य श्री कस्तूरसूरि, पंडित प्रभुदास पारेख आदिने गूजराती भाषा में प्राकृत व्याकरणों का निर्माण किया है। पाश्चात्य विद्वान् डा. पिशल, डॉ. कोवेल आदिने भी अंग्रेजी में प्राकृत व्याकरणों की रचना की है, किन्तु इन सबों का मुख्य आधार आचार्य श्रीहेमचन्द्र का प्राकृतव्याकरण ही है। इस प्रकार प्राकृतभाषा के व्याकरण के क्षेत्र में काफी प्रयत्न हुआ है और हो रहा है। किन्तु प्राकृतभाषा के शब्दकोश के विषय में पर्याप्त एवं व्यापक कहा जाय ऐसा कोई प्रयत्न आजपर्यंत नहीं हुआ था। ऐसे समय में वीसवीं सदी के एक महापुरुष के अन्तर में एक चमत्कारी स्फुरणा हुई, जिसके फलस्वरूप अभिधानराजेन्द्रकोश का अवतार हुआ । यद्यपि प्राचीन युग में प्राकृतभाषा के साथ सम्बन्ध रखनेवाले शब्दकोशों का निर्माण आचार्य पादलिप्त, शातवाहन, अवन्तीसुन्दरी, अभिमानचिह्न, शीलाक, घनपाल, गोपाल, द्रोणाचार्य, राहुलक, प्रज्ञाप्रमाद, पाठोदूखल, हेमचन्द्र आदि अनेक आचार्योने किया था, किन्तु इन शब्दकोशों में सिर्फ देशी शब्दों का ही संग्रह था, प्राकृतभाषा के समृद्ध कोश वे नहीं थे। ऐसा समृद्ध एवं व्यापक कोश बनाने का यश तो श्रीराजेन्द्रसूरिजी महाराज को ही है। यहाँ एक बात विद्वान् वाचकों के ध्यान में रहनी चाहिए कि-आज कितने भी विश्वकोश तैयार हो, फिर भी देश्य शब्दों का सर्वान्तिम विशद, विशाल एवं अतिप्रामाणिक शब्दकोश आचार्य श्रीहेमचन्द्र के बाद में किसीने भी तैयार नहीं किया है । देशी शब्दों के लिये सर्वप्रमाणभूत प्रासादशिखरकलश समान देशी शब्दकोश श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचित देशीनाममाला ही है। प्राकृत ग्रन्थों का अध्ययन करनेवालों के लिये, और खास कर जब प्राकृत भाषा का सम्बन्ध, सहवास, परिचय और गहरा अध्ययन धीरे-धीरे घटता-घटता खंडित होता चला हो, तब प्राकृत भाषा के विस्तृत एवं व्यवस्थित शब्दकोश की नितान्त आवश्यकता थी । ऐसे ही युग में श्रीराजेन्द्रसूरि महाराज के हृदय में ऐसे विश्वकोश की रचना का जीवंत संकरस हुआ। यह उनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा एवं उनके युगपुरुषत्व का एक अनूठा प्रतीक है। अभिधानराजेन्द्रकोश की रचना के बाद पं० श्रीहरगोविन्ददासजीने पाइयसहमहण्णवो,
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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