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________________ आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी की ज्ञानोपासना श्री अगरचन्द नाहटा जैन दर्शन में आत्मा का लक्षण बतलाते हुए कहा गया है कि जिसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग हो उसीका नाम जीव है और इसीलिए इन आस्मिक गुणों का परिपूर्ण विकास ही आत्मा की चरम उपलब्धि है। तत्वार्थ सूत्र के प्रथम सूत्र में ही मोक्ष मार्ग को बतलाते हुए “ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः" सूत्र दिया है। इन गुणों को आच्छादित करनेवाले कर्मों के कारण ही अनादिकाल से प्राणी संसार में परिभ्रमण कर रहे हैं। जितने २ अंश में इन गुणों का विकास होता जायगा, आच्छादित करनेवाले कर्मों का उपशम, क्षयोपशम और क्षय होता जायगा। मानव में इन गुणों के विकास की सबसे अधिक सम्भावना है। इसीलिए मानवगति के बिना मोक्ष प्राप्त नहीं होता, कहा गया है। प्रत्येक मानव का कर्तव्य है कि अपनी आत्मा के इन गुणों के अधिकाधिक विकास करने का पूरा प्रयत्न करे । __ जैन मुनियों का जीवन ज्ञान, दर्शन, चारित्र की साधनामय ही है। सब से पहले मनुष्य की दृष्टि यानी श्रद्धा सम्यक् होनी चाहिए । फिर जो कुछ वह जानता है उसके अनुसार हेयोपादेयपूर्वक जीवन होना चाहिए । जो बातें आत्मिक गुणों का घात करने. वाली हैं उनका त्याग करें और उन गुणों के विकास में जो सहायक हों उन्हे ग्रहण करें। ज्ञान के बिना मनुष्य अन्धा है, क्यों कि उसे हित और अहित का विवेक नहीं होता । ज्ञान स्व-परप्रकाशक है। वह जिसे प्राप्त है; उसका तो कल्याण है ही, पर उसके द्वारा जगत के जीवों को भी प्रकाश मिलता है । ज्ञान अनन्त है । उसे ५ प्रकार का बतलाया गया है। जिसमें मति और श्रुत परोक्ष ज्ञान हैं, अवधि और मनपर्यव देश प्रत्यक्ष हैं, और कैवल्यज्ञान पूर्णतः प्रत्यक्ष है और वही ज्ञान का परिपूर्ण विकास है । पंचम काल में पिछले तीन ज्ञान प्राप्त नहीं हैं, पहले के दो ही हैं । इन में से श्रुत ज्ञान का महात्म्य विशेष रूप से वर्णित किया गया है, क्यों कि आज मोक्ष की साधना का आधार यही रह गया है । उस ज्ञान को विशेष ज्ञानियों की परम्परा मिली हुई है, इसी लिए श्रुतज्ञानी केवलज्ञानी समान तक कहा गया है । केवलज्ञानी जगत के स्वरूप को प्रत्यक्ष रूप से जानता है और श्रूतज्ञानी उस के देखे और बतलाये हुए स्वरूप को परोक्ष रूप से जानता है। खेद है कि (६२)
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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