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________________ और जैनाचार्य आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिजी की शानोपासना। ४८७ आज श्रुतज्ञान भी बहुत ही थोड़े में बच पाया है। दृष्टिवाद, १४ पूर्व आदि का ज्ञान तो लुप्त ही हो गया है । जो कुछ बच पाया है उसका विस्तार भी आज हम जैसे मन्द बुद्धियों के लिए कम नहीं है । उपलब्ध शास्त्रों का स्वाध्याय और मनन निदिध्यासन हम नहीं कर पा रहे हैं । जिनका शास्त्रीय अनुभव एवं ज्ञान गंभीर हैं व अपने ज्ञान का प्रकाश दूसरों तक फैला रहे हैं वे महापुरुष धन्य हैं । आचार्य राजेन्द्रसूरिजी उन महापुरुषों में हैं जिनका जीवन ज्ञान की अखण्ड उपासना में लीन था। चारित्र के साथ उनका ज्ञानवल बहुत ही तेजस्वी था । अपने जीवन में उन्होंने करीब ६१ प्रन्थों की रचना की। प्राकृत, संस्कृत आदि भाषाओं का और व्याकरण, शब्दशास्त्र व सिद्धान्त आदि अनेक विषयों का उनका ज्ञान बहुत ही गम्भीर था। तभी तो वे अभिधान राजेन्द्रकोश जैसे महान् ग्रन्थ का निर्माण कर सके । एक ग्रन्थ भी उनको अमर बनाने के लिए काफी है। पर उनकी तो ज्ञानोपासना विविध क्षेत्रों में गतिमान रही है। जनसाधारण के लिए बहुत से ग्रन्थों की उन्होंने अपनी प्रिय भाषा मालवी और गुजराती में रचना की । पद्यबद्ध रास आदि बनाए और गद्य में बालावबोध आदि टीकाएँ की। इसी प्रकार संस्कृत में भी इन्होंने कई ग्रन्थ व अनेक स्तोत्र आदि बनाये। पूज्य यतीन्द्रसूरिजी की सूचना अनुसार आप के रचनाओं की सूची इस प्रकार है: आचार्यश्री के रचित मुद्रित ग्रन्थ प्रन्थ नाम रचना सं० ग्रन्थ नाम रचना सं० १ पर्युषणाष्टाहिका व्याख्यान ( मारवाडी १० अक्षयतृतीया कथा ( गद्य भाषान्तर.....१९२७ संस्कृत )x १९३८ २ चैत्यवंदन जिन चतुर्विंशतिका+ १९२८ ११ भी कल्पसूत्र बालावबोध १९४६ ३ जिनस्तुति चतुर्विंशतिका+ ....१९२८ १२ आवश्यक विधिगर्भित शान्तिनाथ ४ जिन स्तवन चतुर्विशतिका+ ....१९२८ ___स्तवन+ १९४२ ५ धनसार कुमार चोपाई १९३२ १३ गच्छाचार पयन्ना भाषान्तर १ १९४४ ६ अघटकुमार चोपाई १९३२ १४ तत्त्वविवेक ( तत्त्वत्रयस्वरूप) १९४५ ७ एकसौ आठ बोल का थोकड़ा १९३४ १५ विहरमाण जिनचतुष्पदी* १९४६ ८ प्रश्नोत्तर पुष्पवाटिका (मारवाड़ी १६ पंच सप्ततिशत स्थान चतुष्पदी १९४६ भाषा) १९३६ १७ पुंडरिकाध्ययन सज्झाय+ १९४६ ९ सकलैश्वर्य (विहरमान जिन) १८ साधुवैराग्याचार सज्झाय+ १९४६ स्तोत्र १९३६ १९ श्रीनवपद सिद्धचक्र पजा १९५०
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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