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________________ और जैनाचार्य पू. उपाध्याय श्री मेघविजयजी गुम्फिता अहंद्गीता । ४८१ इसमें सब मिलकर छत्तीस अध्याय हैं। इनमें चौदहसे सोलह अध्यायों का ब्रह्मकाण्ड नाम दिया है। और सत्रह से छत्तीस अध्यायों का कर्मकाण्ड नाम दिया है। एकसे तेरह अध्यायों का सामान्य अध्याय नाम दिया है। इस गीता में मुख्यतः विवेचना इस प्रकार है। चौथे अध्याय के १९ वें श्लोक में दिखाया है कि किसीभी अपेक्षा से आश्रव भी संवर हो जाता है और किसी अपेक्षा तक संवर भी आश्रव हो जाता है " संवरः स्यादाश्रवोऽपि संवरोऽप्याश्रवाय ते । ज्ञानाज्ञानफलं चैतन्मिथ्या सम्यक्श्रुतादिवत् ॥ १९ ॥" ग्रंथकारने इसी विवेचन में प्रधानतया विवेक को ( मुख्य ) स्थान दिया है। विना विवेक संवर आश्रव होता है और सविवेक आश्रव भी संवर हो जाता है, ऐसा उनका कहने का तात्पर्य है । उनका यह कथन जैन सिद्धांत से पूर्णतः अविरुद्ध है। यह हरएक विवेकशील की समझ में आ सकता है। ६ वें अध्याय के पंद्रहवें श्लोक में धर्म को अमृतरूप बताया है "वातं विजयते ज्ञानं दर्शनं पित्तवारणम् । कफनाशाय चरणं धर्मस्तेनामृतायते ॥ १५॥" इस उक्ति को समझाते हुये वे कहते हैं कि-ज्ञान वातदोष को पराजित करता है। दर्शन पितरोग को निवारता है और चारित्र्य कफदोष नष्ट करता है। इन दृष्टियों से धर्म को अमृतरूप बताया है। ग्रन्थकारने जो ज्ञान-दर्शन-चारित्र्य को वात-पित्त-कफ को निवारनेवाले बताये हैं, यह वस्तुस्थिति गहन चिंतन से सत्य प्रतीत होती है। क्योंकि वातप्रकृतियुक्त प्राणी में ज्ञान कम मात्रा में ही होता है। जैसे बुद्धिशक्ति बढ़ती जाती है वैसे ही वातप्रकृति शिथिल होती जाती है । इसी तरह जिस प्राणी में दर्शनमोह हो उसमें क्रोधादि कषाय अधिकतर दृष्टिगोचर होते हैं। कषाय और पित्त अंशतः समान प्रकृति हैं। सम्यग् दर्शन से पित्त शिथिल होता है । परिणाम यह होता है कि चारित्र्यशील प्राणी अनुष्ठान की ओर प्रतिक्षण क्रियाशील रहता है और ऐसा होने से उसकी जड़तावर्धक कफप्रकृति शिथिल होती जाती है। इसी तरह ग्रन्थकार ज्ञानादि तीन गुणों का तथा वातादि तीन दोषों का पारस्परिक संबंध स्थापित करते हैं। यह निष्कर्ष उन्होंने स्वयं अनुभव से प्राप्त किया है ऐसा कह सकते हैं, क्योंकि ऐसा उल्लेख
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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