________________
दशपुर का ऐतिहासिक महत्व एवं
श्रीआर्यरक्षितसूरि पं. मदनलाल जोशी. शास्त्री, सा. रत्न० मन्दसोर ( मालवा )
भारतीय इतिहास का अवगाहन करने पर विविध प्रदेशों की पुरातनता के साथ हमें मालव प्रदेश की प्राचीन ऐतिहासिकता भी उपलब्ध होती है । वैसे मालव प्रदेश अपनी प्राकृतिक छटाओं, नैसर्गिक दृश्यों एवं वरदायी विशिष्ट वाङ्गमय के लिये भी सदा प्रसिद्ध रहा है । प्राचीन इतिहासों, ग्रन्थों, कथा-काव्यों आदि में मालव का गरिमामय समुल्लेख प्राप्त होता है । इसी मालब में प्राचीन अवन्तिका, विदिशा, माहिष्मती, धारा आदि पुरातन ऐतिहासिक नगरों के साथ ही 'दशपुर ' नामक एक ऐसा प्राचीन नगर है, जिसका इति. हास आज भी अपने गौरवपूर्ण पृष्ठों में उस समय की पुरातन स्मृति दिलाता रहता है । एक समय यह नगर अत्यधिक आकर्षक, प्रगतिशील एवं समुन्नत होने के कारण अपने सम्पूर्ण मण्डल का केन्द्रबिन्दु' था।
'दशपुर ' का आधुनिक नाम मन्दसोर है । यह मालव के पश्चिमीय सिंहद्वार पर प्रहरी के समान स्थित हो कर, अपने अन्तर में अतीत के स्वर्णिम पृष्ठ संजोये खण्डहरों एवं उपलब्ध ध्वंसावशेषों में ही सही, अपनी पुरातनता की रक्षा किये हुए चिरसञ्चित गौरव की अभिव्यक्ति कर रहा है । यह प्राचीन नाम दशपुर से दशउर, दश उर से दशोर एवं दशोददसोद से मन्दसोर-बन गया है । इसी दशपुर का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं कलात्मक महत्त्व वास्तव में उल्लेखनीय है, इसमें सन्देह नहीं। विक्रम की पांचवीं शताब्दी में भारत के विविध स्थानों पर आक्रमण कर दशपुर में आये हुए आक्रान्ता हूण राज मिहिरकुल को इसी दशपुर के जनेन्द्र सम्राट् यशोधर्मन ने परास्त कर विजय प्राप्त की थी। जिसके स्मृतिस्वरूप ही विशाल विजयस्तंभ दशपुर से ढाइ मील दूरी पर सौधती (हूण हती) नामक स्थान पर आज भी अवस्थित है । जिस पर ब्राह्मी-लिपि एवं संस्कृत में यशोधर्मन के गुण-गौरवात्मक श्लोक खुदे हुए हैं। वे इस नगर एवं प्रतापी वीर यशोधर्मन की महत्ता के परिचायक हैं । इसके अतिरिक्त यशोधर्मन से भी पूर्व जब यहां बन्धुवर्मा का शासन था, इसी नगर में एक विशाल एवं अद्वितीय कलापूर्ण सूर्यमन्दिर था । जो अपनी कलात्मकता के लिये सुदूरदूर प्रसिद्ध था।
(५६)