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और जैनाचार्य विमलार्य और उनका पउमचरियं । झोते या समन्वय द्वारा संघभेदरूपी फट से महावीर के जैन संघ की रक्षा करने के लिये प्रयत्नशील थे । इसी कारण विमलाचार्य भी शिवार्य, उमास्वामि, आर्यभानु, नागहस्ति, सिद्धसेन प्रभृति कई अन्य प्राचीन आचार्यों की भांति दोनों ही सम्प्रदायों में समानरूप से मान्य हुए एवं अपनाये गये।
सारांश यह कि पउमचरिय के कर्ता विमलार्य जैन भारती के गौरव हैं । जैन साहित्य के इतिहास के आद्य निर्माताओं में से हैं। उनका पउमचरिय प्राकृत भाषा और उसके साहित्य के विकास एवं इतिहास की दृष्टि से, भाषाविज्ञान के अध्ययन की दृष्टि से, प्राचीन भारतीय संस्कृति के ज्ञान की दृष्टि से, भारतीय कथासाहित्य, विशेषकर राम. कथा, के विकास की दृष्टि से, अनेक प्रकार एक महत्त्वपूर्ण साधन है । उनके ग्रंथ के अनेकविध गंभीर विशिष्ट अध्ययन उपयुक्त ज्ञानमनीषियों की प्रतीक्षा में हैं। अभीतक जो कुछ हुआ है वह अपर्याप्त है, जो होना शेष है वह उसकी अपेक्षा बहुत अधिक है।
४०. यथा, डा. घाटगे का निबंध, अखिलभारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन, लखनऊ, १९५१ ई.का निबंधसारसंग्रह, पृ. ११६.