SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 527
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ કર भीमद् विजयराजेन्द्रसूरि-स्मारक-पंथ जिन, जैनागम पू० या ४६७ ई० पू० में हुआ था और उसके आधार पर पउमचरिय की रचनातिथि वी. नि. सं. ५३० के अर्थ ५३ ई० या ६३ ई० होते हैं। - प्रथम मत पं० हरिदास शास्त्री का है । प्रश्नोत्तररत्नमालिका संस्कृत का प्राचीन सुभाषित काव्य है। इसकी दो एक टीकाएँ श्वेताम्बर विद्वानोंने भी की है। ग्रन्थ के इन संस्करणों के अंतिम पद्य में रचयिता के नाम के स्थान में केवल 'सितपट गुरु' लिखा है और इन टीकाकारों ने उसे विमलसूरिकृत प्रकट किया हैं। किंतु यह सिद्ध हो चुका है कि वह ग्रन्थ राष्टकुट सम्राट् अमोघवर्ष नृपतुंग ( ८१५-७७ ई० ) की या उनके नाम से उनकी राजसभा के किसी कवि की है । विमल नाम के विमल, विमलचन्द्र, विमलदास, विमलकीर्ति, ज्ञानविमल, नयविमल आदि जो अन्य श्वतांबर या दिगम्बर विद्वान् हुए हैं वे सब १२ वीं शती ई० के उपरान्त के हैं। ८ वीं शती ई० के उपरान्त के किसी विद्वान का पउमचरिय के कर्ता के साथ समीकरण करने का प्रश्न ही नहीं उठता । पउमचरिय को पद्मचरित ( ६७६ ई० ) का पश्चाद्वर्ती रूपान्तर कहना कल्पनातिरेक है। अनेक प्राकृत रचनाओं का तो कालान्तर में संस्कृतीकरण हुआ, किंतु किसी संस्कृत रचना का प्राकृतीकरण होने का स्यात ही कोई उदाहरण मिले। रविषेण के ग्रन्थ का परिमाण विमलार्य के ग्रन्थ से प्रायः दुगुना है और यह विस्तारवृद्धि विमलार्य के संक्षिप्त विवरणों का विशद व्याख्यान तथा अनेक प्रकरणों का कभी कभी आवश्यक विस्तार के साथ वर्णन करने का ही परिणाम दृष्टिगोचर होता है। तीसरे कुछ ऐसे प्राकृत पद हैं जिन्हें यदि संस्कृत में रूपान्तरित किया जाता तो मूल पाठ का भाव ही लुप्त हो जाता, अतः रविषेणने उनकी व्याख्या मात्र से ही संतोष कर लिया । चौथे, रविवेण के एक सौ वर्ष के भीतर होनेवाले उद्योतन एवं स्वयंभू ने रविषेण का भी स्मरण किया और विमल का भी और उस स्मरण से यह स्पष्ट है कि ये विद्वान् १४. पउम, शाह, भूमिका पृ. ३ । १५. एक हेमप्रम ( ११८६ ई ) की और दूसरी देवेन्द्र एवं मणिभद्र ( १३७३ ई.) की। १६. स्टडीज़ इन दी जैन सोर्सेज, अध्याय ९। १७. यथा भगवतीआराधना, पंचसंग्रह, भावसंग्रह वकर्मोपदेश, लोकविभाग, आदि। १८. यथा-माणसुपुत्त एएजं उसभजिणेण वारिओ भरओ। तेण इमे सयलच्चिय वुच्चंतिय माहणालोए ॥ -पउमचरिउ, ४/८४ जिसका अनुवाद रविषेण ने निम्न प्रकार कियायस्मान्माइननं पुत्र कार्करिति निवारितः । ऋषभेण ततो याता 'माहना' इति ते श्रुतिम् ॥ -पअचरित, ४/१२२
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy