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________________ और जैनाचार्य विमलाये और उनका पउमचरियं । विमलार्य को रविषेण से स्वतंत्र एवं पूर्ववर्ती विद्वान् विश्वास करते थे । ग्रन्थ में प्रयुक्त भाषा की दृष्टि से भी विद्वानों ने पउमचरिय ७वीं शती ई० से पर्याप्त पूर्व की रचना निर्धारित की है । वास्तव में रविषेण का पद्मचरित विमलार्य के पउमचरिय का ही कहीं कहीं छायानुवाद, कहीं भावानुवाद और कहीं कहीं विशद व्याख्यान मात्र है । कथा की रूपरेखा, रचना शैली, प्रन्थ एवं उद्देशों के शीर्षक, उनकी संख्या, स्वपरिचय एवं महावीर संवत् में रचनातिथि का देना आदि अनेक महत्त्वपूर्ण बातों में रविषेणने विमला का अद्भुत अनुसरण एवं अनुकरण किया है । प्रत्येक सर्ग के अन्त में उन्होंने अपनी छाप भी उसी प्रकार दी है और जैसे पउमचरिय ' विमलाङ्क ' काव्य कहलाता है पद्मचरित 'ख्यड' काव्य कहलाता है । ग्रन्थ में प्रयुक्त छन्दों के आधार पर के. बी. ध्रुव उसे ६ठी या ७वीं शती की रचना अनुमान करते हैं "। किंतु उद्देशों के अंतिम पद्यों तथा कतिपय फुटकर पद्यों को छोड़कर Raftar अधिकांश भाग आर्या छन्द में ही रचित है और यह छन्द प्राकृत भाषा के साहित्य में प्राय: प्रारंभकाल से ही पाया जाता है । केवल इस आधार पर इस रचना को इतना पीछे की निश्चित नहीं की जा सकती । अन्य भी किसी विद्वान्ने इस तर्क को मान्य नहीं किया है । भाषा संबंधी आधार एक अनिश्चित आधार है । उसी आधार पर यदि ध्रुवने पउमचरि का रचनाकाल ६-७ वीं शती ई० अनुमान किया तो जैकोबी, कीथ और वुलनर ने ४-५ वीं शती और विन्टरनिट्ज ने प्रथम शती ई० । स्वयं कीथ ने इस तथ्य को मान्य किया कि बिमलसूरि का पउमचरिय महाष्ट्री प्राकृत का सर्व प्राचीन महाकाव्य हैं"। और जैकोबी का कथन है कि ग्रन्थ की भाषा, व्याकरण और शैली को देखते हुए पउमचरिय उस काल की रचना प्रतीत होती है जब कि प्राकृत भाषा व्याकरण के नियमों से परिष्कृत नहीं हो पाई थी, उसकी काव्यशैली भी अति सरल एवं आद्ययुगीन हैं"। इस विद्वान् यद्यपि इस स्थल पर इसे ४-५ वीं शती की रचना अनुमान की है तथापि अन्यत्र उसे उसके दूसरी शती ई० की होने में कोई बाधा प्रतीत नही हुई । आचार्यं क्षितिमोहनसेन आदि अन्य भाषाविज्ञ कुन्दकुन्द, शिवार्य, विमलार्य आदि के प्रन्थों में प्रयुक्त १९. के. बी. ध्रुव, इन्ट्रोडेक्शन टु प्राकृत । २०. कीथ - हिस्टरी ऑफ संस्कृत लिटरेचर । २१. एनसाइक्लोपीडिया ऑफ एथिक्स एण्ड रिलीजन, भाग ७ पृ. ४३७; मोडर्न रिव्यु दिसंबर १९१४ २२. जैकोवी - परिशिष्ट पर्व, भूमिका, पृ. १९.
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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