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________________ और जैनाचार्य विमलार्य और उनका पउमचरियं । नहीं है और विमलार्य ने स्वयं को सीधे ' नाइलवंशदिनकर' राहुसूरि का ही शिष्य ( या प्रशिष्य ? ) सूचित किया है। . पउमचरिय की सर्व प्राचीन उपलब्ध प्रति ताडपत्रीय है । वि. सं. ११९८ ( सन् ११४१ ई० ) में राजा जयसिंहदेव के राज्य में भड़ौच नगर में लिखी गई थी। विमलार्य के सर्व प्राचीन ज्ञात उल्लेख उद्योतनसूरि की 'कुवलयमाला' (७७८ ई० ) में मिलते हैं, जिनके अनुसार विमलार्य न केवल अपने विमलांक काव्य ( पउमचरिय ) के रचयिता थे; वरन् सर्व प्रथम हरिवंश पुराण के भी रचयिता थे । स्वयं पउमचरिय की प्रशस्ति के 'सोऊण पुधगए नारायणसीरिचरियाई' शब्दों से भी यही ध्वनित होता है कि विमलार्य ने श्री नारायण के चरित ( अर्थात् कृष्णचरित या हरिवंश ) की रचना पउमचरिय से भी पहले करली थी । पउमचरिय के नायक रामचन्द्र बलभद्र या बलराम थे। विमलार्य के इन उल्लेखों के उपरान्त उद्योतनमूरि ने ४१ वी गाथा में वरांगचरित के कर्ता जटिलाचार्य तथा उनके प्रायः समकालीन पद्मचरित के कर्ता रविषेण ( ६७६ ई० ) का उल्लेख किया है । उद्योतनसूरि के समकालीन अपभ्रंशभाषा के महाकवि ( स्वयंभू लगभग ७७५७९५ ई० ) ने भी विमलार्य का एक प्राचीन कवि के रूप में स्मरण किया है। रविषेणका भी उन्होंने स्मरण किया है, किन्तु विमल के पश्चात् । संभव है कि जिस प्रकार स्वयंभू की रामायण विमल के पउमचरिय पर आधारित है, उसी प्रकार उनका · अरिहनेमिचरिउ' ( हरिवंश ) भी विमल के हरिवंश पर ही आधारित हो, और क्या आश्चर्य कि जिनसेन पुन्नाट के हरिवंश ( ७४३ ई.) का आधार भी विमलार्य का ही ग्रन्थ हो । इसके अतिरिक्त रविषेणका पद्मचरित ( ६७६ ई० ) जो कि सर्वप्राचीन उपलब्ध संस्कृतः जैन पुराण एवं रामचरित है, विमलार्य के पउमचरिय का ही विशद छायानुवाद प्रतीत. ५. इह नाइलवंसदिणयरराहुसरियसीसेण महप्पेण पुव्वहरेण विमलायरिएण विरइयं सम्मत्तं पउमचरियं ॥ ६. जैसलमेर ग्रन्थभंडार सूची, पृ. १७. ७. जारिसयं विमलंकी विमल को तारिसं लहइ अत्थं । अमयमइयं व सरसं सरसं चिय पाइयं जस्स ॥ ३६ ॥ बुहयण सहस्स दइयं हरिवंसुप्पत्तिकारय पढमं । वंदामि वंदिय पि हु हरिवंस चेव विमलपयं ॥ ३८ ॥ ८. द्विशताभ्यधिके समासहस्र समतीतेऽर्धचतुर्थवर्षयुक्ते । जिनभास्करवर्द्धमानसिद्धे चरितं पद्ममुनेरिदं निबद्धम् ॥ ___इसकी तुलना फूटनोट २ से कीजिये। रविषेण का पद्मचरित माणिक्यचन्द्र दि. जै. ग्रंथमाला बंबई से प्रकाशित हुआ है।
SR No.012068
Book TitleRajendrasuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1957
Total Pages986
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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