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और जैनाचार्य
श्री भद्रबाहु श्रुतकेवली। स्थूलभद्र को संमृतिविजय का शिष्य बतलाया है। क्यों कि उन्होंने उनसे ही दीक्षा ली थी। भद्रबाहु का कोई शिष्य नहीं था । अतः उनकी पट्टावली श्वेताम्बर परम्परा में उनके साथ ही समाप्त हो जाती है' और छठे श्रुतकेवली स्थूलभद्र की परम्परा ही आगे चलती है।
उधर दिगम्बर सम्प्रदाय के प्रमुख आचार्य कुन्दकुन्दने अपने बोधपाहुड़े के अन्त में अपने को भद्रबाहु का शिष्य बतलाते हुए श्रुतकेवली भद्रबाहु को अपना गमक गुरु कहा है और उनका जयकार किया है। तदनुसार श्रवणबेलगोला के शिलालेखों में कुन्दकुन्द को श्रुतकेवली भद्रबाहु के अन्वय में हुआ बतलाया है।
पाटलीपुत्रीय वाचना में भद्रबाहु की अनुपस्थिति, श्रीसंघ का उनसे विवाद और संघ द्वारा उन्हें बहिष्कृत किया जाने का उल्लेख, तथा श्वेताम्बर परम्परा में भद्रबाहु की शिष्य परम्परा में उनकी मान्यता आदि बातों से यह प्रकट होता है कि उनके जीवनकाल में कोई बात ऐसी अवश्य हुई, जिसके कारण संघमेद हुआ। नियुक्तिकर्ता भद्रबाहु
श्वेताम्बर परम्परा में श्रुतकेवली भद्रबाहु नियुक्तिकार के रूप में ख्यात हैं। आवश्यकनियुक्ति में उसके रचयिताने अपनी रची हुई नियुक्तियों की नामावली इस प्रकार दी हैआवश्यकनियुक्ति, दशवकालिकनि०, उत्तराध्ययननि०, आचारागनि०, सूत्रकृताङ्गनि०, सूर्य. प्रज्ञप्तिनि०, ऋषिभाषितनि०, पिण्डनि०, ओपनि० । इन नियुक्तियों के सिवाय कुछ मूल ग्रन्थ भी उनके द्वारा रचित माने जाते हैं । यथा-बृहत्कल्प, व्यवहार, दशाश्रुतस्कन्ध, भद्रवाहुसंहिता, उवसग्गहरस्तोत्र आदि ।
श्रीआत्मानन्द जन्म शताब्दी स्मारक ग्रन्थ में मुनिश्री चतुरविजयजी का एक लेख भद्रबाहुस्वामी पर प्रकाशित हुआ था। उसमें उन्होंने अनेक आन्तरिक प्रमाणों के आधार पर नियुक्तियों के श्रुतकेवली भद्रबाहुकर्तृक होने में आपत्ति की थी और उन्हें द्वितीय भद्रबाहु. कृत बतलाया था। किन्तु श्वेताम्बर जैन वाङ्मय में दो भद्रबाहुओं का कोई निर्देश नहीं
१. भद्रबाहु के चार शिष्य और उनसे निकले हुए चार गणों का उल्लेख स्थविरावली में है, अतः भद्रबाहु का कोई शिष्य नहीं था और उनकी पट्टावली उनके साथ ही समाप्त होती है, यह लिखना ठीक नहीं है।
-संपा. श्री नाहटाजी. २ सद्दवियारो हुओ भासासुतेसु जं जिणे कहियं ।
सो तह कहियं णायं सीसेण य भद्दबाहुस्स ॥ ६१ ॥ बारसअंगवियाणं चउदसपुव्वंग विउलवित्थरणं । सुयणाणि भहबाहु गमयगुरू भायवओ जयओ ॥ १२॥ -बोधपाहुड